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Tuesday, December 12, 2017

जनसत्ता में 13 सितम्बर 2017

दुनिया मेरे आगे
विदा होती बारिश को सुनते हुए    
एकता कानूनगो बक्षी

‘विदाई’ शब्द ही अपने आप में नमी भरा होता है. जब भी किसी की विदाई की बात होती है मन भीग-सा जाता है. कभी-कभी तो विदा होने वाले से प्रेम और आत्मीयता का हमारा इतना अधिक जुड़ाव हो जाता है कि आँखों से भी आंसुओं की बारिश होने लगती है. व्यक्ति हो या अपना कोई प्रिय प्राणी या फिर मौसम ही क्यों न हो, कहीं न कहीं उससे बिछुड़ते हुए मन भर उठता है.

मौसमों की विदाई कोई नई बात नहीं है. गर्मियों के बाद बारिश का मौसम आता है फिर शीत ऋतु की आहट भी ठंडी हवाओं के साथ सुनाई देने लगती है. लेकिन बरसात की विदाई मुझे कुछ ज्यादा ही संवेदनशील बना देती है.  

अब देखिये, कहीं अल्पवर्षा से किसानों के आँसू तो कहीं अतिवर्षा से बाढ़ और कहीं सिर्फ बादलों और बूंदों की लुकाछिपी के बावजूद ज्यादातर जगहों पर बरसात खुशियों का संगीत लेकर ही आती है..भीगे-भीगे जुलाई-अगस्त के इस प्यारे मौसम के भी अब विदाई के दिन आ ही गए हैं. गरम गरम पकौड़ियों और दिलकश भुट्टो की दावतों के बहानेगर्म चाय की टपरी पर दोस्तों के चहकते-खिलखिलाते ठिकाने कीचड़ में सनी फुटबाल को एक-दूसरे पर उछालने की मस्ती, कागज़ की कश्ती को तैराने के मासूम खेलउफनती बावडियो,कुओं, नदी तालाबो के लबालब नज़ारे,  पहाड़ों को छलान्गती पानी की चमकदार धाराएं, झरनों,प्रपातों का घने जंगलों और खाइयों में यकायक गुम हो जाना...अद्भुत...कितना कुछ था बरसात के मौसम में. लेकिन अब यह सब धीरे-धीरे क्षीण होता जाएगा...बरसात की विदाई नजदीक है.. ये भी सच है कि कुछ क्षेत्र पर इंद्रदेव काफी मेहरबान रहे तो कुछ की उम्मीदों पर बिजली भी गिरी होगी कुछ क्षेत्रो में लोग बारिश का इंतज़ार ही करते रह गए होंगे और कहीं उम्मीद से ज्यादा बरसात ने खुशियों पर पानी फेर दिया होगा..

अब वे चुहल भरे और रोमाचक लम्हे बहुत याद आयेंगे..गुदगुदाएंगे..तो कुछ दुःख और करुणा से दिलो-दिमाग को भिगोते रहेंगे. कुछ लोग गड्डे और फिसलन से बचने में कामयाब हो गए तो कुछ फिसलकर धडाम से जमीन चाटने लगे .. किसी के घर की छत टप टप के तराने पूरे मौसम सुनाती रही तो बहुत से अन्नदाताओं के चेहरों पर लहलहाती फसल ने मुस्कराहट बिखेर दी.  रंगबिरंगे छातों और रेनकोट से अपने को बचाते..  रोज कमाने-खाने वाले मेहनतकश लोगो की फ़ौज की पूरे मौसम भाग-दौड़ के साथ-साथ चारों ओर हरियाली की चादर ओढ़े सद्यस्नाता प्रकृतिरंगबिरंगे फूलों से सजी घाटियाँ, पहाड़.. जाती हुई बरसात का ये अनुपम उपहार ठण्ड के मौसम को भी खुशनुमा मनमोहक बनाए रखेगा.

हालांकि स्वास्थ्य  के लिए अब यह समय काफी सतर्क रहने की मांग करता है. मौसंम के बार बार बदलते मिज़ाज से अनेक बीमारियाँ के फैलने की आशंका इस समय बनी रहती है. बारिश के बाद के ठहरे हुए पानी में कई विषाणुओं के पनपने की पूरी संभावना रहती है. ऐसे में स्वछता और सही खान पान हमारी प्राथमिकता में होना चाहिए. किसी भी तरह की कठिन और कष्टप्रद  स्थिति के उभरने से पहले ही कुछ बेहद ज़रूरी सावधानियां हम सबको बरतने की ज़रूरत रहती है. जो हम सब पहले से जानते भी हैं लेकिन इन्हें दोहरा लेना भी गलत नहीं होगा.  जैसे कहीं भी अनावश्यक जल जमाव न होने दें अपने आप को मच्छरों से बचाए. बीमार और सर्दी जुकाम से संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से बचें , मौसम के बदलाव के दिनों में बाहर का खाना खाने से बचने की कोशिश की जाए, जहां तक संभव हो घर का बना ताज़ा भोजन किया जाए, नियमित व्यायाम को दिनचर्या में शामिल करना भी एक विवेक पूर्ण कदम होता है. ऐसे उपाय मौसम में हो रहे बदलाव के दुष्प्रभाव से बचने में हमारी काफी हद तक मदद कर सकते हैं.
                                       
जिस तरह बारिश के स्वागत से पहले हम नियमित तौर पर कुछ तैयारिया करते हैंवैसे ही उसकी विदाई पर भी हमें उतने ही उत्साह के साथ कुछ जिम्मेदारियों निभा लेनी चाहिएजैसे बारिश के दौरान बने गड्डो को अब भर देना चाहिएआस पास भरे पानी में फिनाइल और कीटाणु नाशक द्रव की बूँदें डालते रहना चाहिए. संक्रमित आवारा पशु की रपट नजदीकी नगर निगम या पशु चिकित्सालय में करवाना चाहिए. खुद का और अपने आस पास  का ध्यान रखते हुए इस मनमोहक और खुशनुमा मौसम को विदाई देना चाहिए .

बारिश की विदाई के साथ ही काले बादलो के उमड़ने घुमड़ने के दिन भी धीरे-धीरे लुप्त होने लगते हैं ऐसे में कुछ पल अपने रोज़ के कामो से चुरा कर. हाथ में गर्म चाय की प्याली लें और सुने इस विदा होती बारिश की लगातार मद्दिम और दूर जाती कर्णप्रिय गूँज को... ये एक ऐसी विदाई है जिसमे अद्भुत सम्मोहन है... अपने आप को ज़रूर सम्मिलित करें  बारिश की विदाई में...बरसात का बहुत पुराना वादा है हमारे साथ....वह जायेगी..और लौटकर फिर आयेगी...!   

एकता कानूनगो बक्षी

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