लेख
फिर चाहिए मुझे अपना घर
एकता कानूनगो
बहुत दिनों बाद आज जब मैं रिंग रोड से गुजरी और अपने घर की तरफ उत्सुकता से देखा तो मुझे झटका सा लगा । मै बेहद उदास हो गई।ऐसा लगा जैसे मेरा अपना कोई मुझ से दूर हो गया हो। रिंग रोड और घर के बीच वुत्र्छ खेत एवं एक मैदान ही तो था किन्तु आज घर दिखाई नही दे रहा था । खुले मैदान की जगह सूखी गाजर घास की घनी झाड़ियों में हजारों पॉलिथीन की थैलियों का कचरा ही कचरा मुँह चिढ़ा रहा था। हाँ,सीमेंट-कांक्रिट की वह इमारत जरूर दिखाई दे रही थी, जिसमे वुत्र्छ समय से मैं अपने मम्मी-पापा के साथ अपनी मेनेजमेंट की पढ़ाई पूरी करने मे जी-जान से जुटी हुई थी।
आज हम उस मुकाम पर पहुँच गए हैं जहाँ सब वुत्र्छ 'लाइटनिंग फास्ट स्पीड' से प्राप्त करने का बोलबाला है। लेकिन हम चाहे किसी भी देश के नागरिक हों,किसी भी धर्म को मानने वाले हों,घर के प्रति एक ही मनोभाव दिखाई देते हैं। इंसान के जीवन में घर का महत्व बहुत ज्यादा है। घर के बारे मे लोग कहते हैं-'इट्स ए बिग इंवेस्टमेंट।' लेकिन मै यहाँ 'घर' की बात कर रही हूँ,मकान की नहीं।
कहते हैं घर अपनों से बनता है , मेरा तो मानना है कि मेरा घर मेरे परिवार के सदस्यों तक ही सीमित नहीं रहा है, आसपास का पर्यावरण भी उसमें शामिल रहा है,क्योंकि हमारा जीवन हमारे पड़ौस और पर्यावरण से अलग नही रह सकता। प्रकृति और जीव जंतुओं के बगैर पर्यावरण की कल्पना नही की जा सकती। किसी भी व्यक्ति के विकास में वातावरण एवं परिस्थितियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इन्ही के बीच रहते हुए अपनी योग्यता और प्रतिभा का उपयोग करके वह अंपने सपने पूरे करता है। घर वेत्र्वल फाइनेंशियल रिटर्न के लिए ही नही खरीदा जाता है, घर एक प्रकार के मानसिक ठहराव की स्थिति को पाने का,सुवूत्र्न या शाँति का माध्यम है। घर हमें अपने आप से परिचित कराता है। घर से बिछोह की कल्पना मात्र से बीती हुई घटनाएँ,अच्छे-बुरे लम्हे,खट्टी-मीठी यादें ,स्मृतियाँ एकाएक सामने उपस्थित हो जाती हैं।
अभी हाल ही की तो बात है जब हम इस नए घर मे शिफ्ट हुए थे। कितना अच्छा घर मिला था मुझे। सालों तक किराए के मकानों मे रहते हुए अपने घर मे आकर जैसे सब वुत्र्छ पा लिया था मैनें। घर के ठीक सामने हरे-हरे खेतों के बीच से सुबह का सूरज निकलता था। चिड़ियों की चहचहाट सुनते हुए नींद खुलती थी। हास्य क्लब के बुजुर्गों के ठहाकों और रफी, मुवेत्र्श तथा किशोर वुत्र्मार के तरानों को गुनगुनाते मार्निंग वाक पर निकले खुशगवार लोगों की कर्णप्रिय ध्वनियों की गूँज के साथ दिन की शुरुआत से ही तन-मन उमंग से भर उठता था। दिन मे बकरियां,गायें और कभी-कभी ऊँट एवं भेड़ों का काफिला रोमांचित करता था। खेतों के बीच वुत्र्छ पोखरों पर सपेत्र्द बगुले और अनजाने पक्षी किलोल करते मन को पुलकित कर देते थे । विकसित होते शहर की सीमा पर बसी नईबस्ती मे घर था हमारा । विकास का पंजा धीरे धीरे हमारी बस्ती की ओर भी बढ़ता चला आ रहा था।
वुत्र्छ समय बाद सामने के मैदान पर नए मकानों की नई योजना स्वीवृत्र्त हो गई। टाउन प्लानिंग का हिस्सा बन गए खेत। खेतों में बीज नही बोए गए। मुझे लगा अगली फसल पर खेत फिर से लहलहाएँगे। लेकिन ऐसा नही हुआ,खेत सूने पड़े रहे। हरियाली का स्थान गाजर घाँस की एलर्जिक सपेत्र्दी ने ले ली। डरकर लोगों ने सुबह शाम का घूमना कम कर दिया। धीरे-धीरे मेरे घर के आसपास विकास के साइड इफेक्ट नजर आने लगे।
वह घर जो कभी परिकथाओं के आशियानों की तरह अद्भुत अनुभूति का संचार करता था,रिंग रोड से अपने घर को निहारना मन में आनंद के फव्वारे सा महसूस होता था अब वह कहीं दिखाई नही दे रहा है।
क्या वेत्र्वल नगर निगम प्रशासन,सरकार को इस बात के लिए कोसना ठीक होगा? इन स्थितियों के लिए हमारी कोई जिम्मेदारी नही हो सकती? हम जानते हैं पॉलिथीन के उपयोग पर काफी समय से प्रतिबंध लगाया जा चुका है लेकिन हम आज भी इसका बहिष्कार नहीं कर पाए हैं। अपने साथ-साथ हमारे आसपास मौजूद बेजुबान प्राणियों पर भी अत्याचार कर रहे हें जो लगातार अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे है।
जरा सोंचिए ! शहर को कांक्रिट के मरुस्थल तथा पॉलिथीन की झाड़ियों में बदल जाने के पहले मुझे अपना वह घर फिर नहीं मिलना चाहिए़ ? प्लीज वेक-अप ।
एकता कानूनगो
फिर चाहिए मुझे अपना घर
एकता कानूनगो
बहुत दिनों बाद आज जब मैं रिंग रोड से गुजरी और अपने घर की तरफ उत्सुकता से देखा तो मुझे झटका सा लगा । मै बेहद उदास हो गई।ऐसा लगा जैसे मेरा अपना कोई मुझ से दूर हो गया हो। रिंग रोड और घर के बीच वुत्र्छ खेत एवं एक मैदान ही तो था किन्तु आज घर दिखाई नही दे रहा था । खुले मैदान की जगह सूखी गाजर घास की घनी झाड़ियों में हजारों पॉलिथीन की थैलियों का कचरा ही कचरा मुँह चिढ़ा रहा था। हाँ,सीमेंट-कांक्रिट की वह इमारत जरूर दिखाई दे रही थी, जिसमे वुत्र्छ समय से मैं अपने मम्मी-पापा के साथ अपनी मेनेजमेंट की पढ़ाई पूरी करने मे जी-जान से जुटी हुई थी।
आज हम उस मुकाम पर पहुँच गए हैं जहाँ सब वुत्र्छ 'लाइटनिंग फास्ट स्पीड' से प्राप्त करने का बोलबाला है। लेकिन हम चाहे किसी भी देश के नागरिक हों,किसी भी धर्म को मानने वाले हों,घर के प्रति एक ही मनोभाव दिखाई देते हैं। इंसान के जीवन में घर का महत्व बहुत ज्यादा है। घर के बारे मे लोग कहते हैं-'इट्स ए बिग इंवेस्टमेंट।' लेकिन मै यहाँ 'घर' की बात कर रही हूँ,मकान की नहीं।
कहते हैं घर अपनों से बनता है , मेरा तो मानना है कि मेरा घर मेरे परिवार के सदस्यों तक ही सीमित नहीं रहा है, आसपास का पर्यावरण भी उसमें शामिल रहा है,क्योंकि हमारा जीवन हमारे पड़ौस और पर्यावरण से अलग नही रह सकता। प्रकृति और जीव जंतुओं के बगैर पर्यावरण की कल्पना नही की जा सकती। किसी भी व्यक्ति के विकास में वातावरण एवं परिस्थितियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इन्ही के बीच रहते हुए अपनी योग्यता और प्रतिभा का उपयोग करके वह अंपने सपने पूरे करता है। घर वेत्र्वल फाइनेंशियल रिटर्न के लिए ही नही खरीदा जाता है, घर एक प्रकार के मानसिक ठहराव की स्थिति को पाने का,सुवूत्र्न या शाँति का माध्यम है। घर हमें अपने आप से परिचित कराता है। घर से बिछोह की कल्पना मात्र से बीती हुई घटनाएँ,अच्छे-बुरे लम्हे,खट्टी-मीठी यादें ,स्मृतियाँ एकाएक सामने उपस्थित हो जाती हैं।
अभी हाल ही की तो बात है जब हम इस नए घर मे शिफ्ट हुए थे। कितना अच्छा घर मिला था मुझे। सालों तक किराए के मकानों मे रहते हुए अपने घर मे आकर जैसे सब वुत्र्छ पा लिया था मैनें। घर के ठीक सामने हरे-हरे खेतों के बीच से सुबह का सूरज निकलता था। चिड़ियों की चहचहाट सुनते हुए नींद खुलती थी। हास्य क्लब के बुजुर्गों के ठहाकों और रफी, मुवेत्र्श तथा किशोर वुत्र्मार के तरानों को गुनगुनाते मार्निंग वाक पर निकले खुशगवार लोगों की कर्णप्रिय ध्वनियों की गूँज के साथ दिन की शुरुआत से ही तन-मन उमंग से भर उठता था। दिन मे बकरियां,गायें और कभी-कभी ऊँट एवं भेड़ों का काफिला रोमांचित करता था। खेतों के बीच वुत्र्छ पोखरों पर सपेत्र्द बगुले और अनजाने पक्षी किलोल करते मन को पुलकित कर देते थे । विकसित होते शहर की सीमा पर बसी नईबस्ती मे घर था हमारा । विकास का पंजा धीरे धीरे हमारी बस्ती की ओर भी बढ़ता चला आ रहा था।
वुत्र्छ समय बाद सामने के मैदान पर नए मकानों की नई योजना स्वीवृत्र्त हो गई। टाउन प्लानिंग का हिस्सा बन गए खेत। खेतों में बीज नही बोए गए। मुझे लगा अगली फसल पर खेत फिर से लहलहाएँगे। लेकिन ऐसा नही हुआ,खेत सूने पड़े रहे। हरियाली का स्थान गाजर घाँस की एलर्जिक सपेत्र्दी ने ले ली। डरकर लोगों ने सुबह शाम का घूमना कम कर दिया। धीरे-धीरे मेरे घर के आसपास विकास के साइड इफेक्ट नजर आने लगे।
वह घर जो कभी परिकथाओं के आशियानों की तरह अद्भुत अनुभूति का संचार करता था,रिंग रोड से अपने घर को निहारना मन में आनंद के फव्वारे सा महसूस होता था अब वह कहीं दिखाई नही दे रहा है।
क्या वेत्र्वल नगर निगम प्रशासन,सरकार को इस बात के लिए कोसना ठीक होगा? इन स्थितियों के लिए हमारी कोई जिम्मेदारी नही हो सकती? हम जानते हैं पॉलिथीन के उपयोग पर काफी समय से प्रतिबंध लगाया जा चुका है लेकिन हम आज भी इसका बहिष्कार नहीं कर पाए हैं। अपने साथ-साथ हमारे आसपास मौजूद बेजुबान प्राणियों पर भी अत्याचार कर रहे हें जो लगातार अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे है।
जरा सोंचिए ! शहर को कांक्रिट के मरुस्थल तथा पॉलिथीन की झाड़ियों में बदल जाने के पहले मुझे अपना वह घर फिर नहीं मिलना चाहिए़ ? प्लीज वेक-अप ।
एकता कानूनगो
Now every morning i will try to clean my home (my environment).......not only my house as i was doing before.
ReplyDeleteThanx 4 reminding me the real meaning of home in this beautiful words..!!!