प्रेरक अनुभव
मन मेँ इंद्रधनुष
एकता कानूनगो
उस दिन मेरी बैंक की प्रतियोगी परीक्षा थी। सुबह परीक्षा केंद्र पर मुझे छोड़कर मम्मी-पापा उनके मित्र के घर चले गए थे। परीक्षा समाप्त होने पर जब मैं हॉल से बाहर निकली बहुत कनफ्यूज्ड हो गई थी। क्या मैं इस बार बेहतर कर पाई हूं। इस बार तो मेरा सिलेकशन होना ही चाहिए। अैंर कब तक स्ट्रगल करती रहँ। बस अब बहुत हो गया। सोंच ही रही थी कि सामने से पापा-मम्मी आते दिखाई दिए।
'कैसा रहा बेटा पेपर?'मम्मी ने पूछा तो कंफ्यूजन और बढ़ गया लेकिन मैंने मुस्कुराते हुए कहा 'अच्छा रहा मम्मी!'
सुनकर मम्मी में थोड़ा उत्साह नजर आया। उन्होने बात आगे बढ़ाते हुए कहा-'बेटा लक्ष्मी दादी याद है तुम्हे? तुम्हारे पापा के दोस्त की मम्मी, वो तुमसे मिलना चाहती हैं।कई सालों से तुम्हे देखा नहीं है सो तुमसे मिलने की जिद लिए बैठी हैं। उनका घर रास्ते में ही पड़ता है। ' इससे पहले कि मैँ कुछ कहती मम्मी जल्दी-जल्दी बोली'भले ही घर के अंन्दर मत जाना बाहर से ही मिल लेना पर चलो जरूर,दादी खुश हो जाएँगीं।'
दादा-दादी से मुझे हमेशा से लगाव रहा है,उन्ही के लाड़ प्यार के बीच बड़ी हुई हूँ सो ना नहीं कर सकी । सोचा मेरी दादी को चेन्नई गए पूरे चार महिने हो गए हैं इस बहाने लक्ष्मी दादी से मिलकर कुछ देर के लिए ही उनकी कमी दूर हो जाएगी।
अंकल के घर के दरवाजे बंद थे।मैने पुकारा तो लक्ष्मी दादी तुरंत बाहर आ गर्ईं। मुझे देखकर वे बहुत खुश हो गर्ईं । मैने उनके पैर छुए। युवा होने के बाद मै दादी लक्ष्मी से पहली बार ही मिल रही थी लेकिन उनके व्यवहार से लगता था जैसे वे मुझे बहुत अच्छे से जानती हों। लक्ष्मी दादी बहुत प्रसन्न तथा अपने जीवन से बहुत संतुष्ट दिखाई दे रहीं थीं। 'बेटा कैसा रहा बैंक एंट्रेंस एक्झाम ? मैने न्यूज पेपर में पढ़ा था, आज बैंक की परीक्षा है। खूब मेहनत करो सफलता मिलेगी। तुम तो वैसे ही बहुत होशियार लड़की हो।' लागातार वे मुझे प्रोत्साहित करती रहीं।
तभी आंटी(उनकी बहू) भी आ गर्ईं। उन्होने मुझसे शरबत के लिए पूछा। इस पर दादी ने कुछ प्रेमभरी कठोरता से कहा 'पूछते क्योँ हो शरबत तो बनाना ही है परीक्षा देकर आ रही है,थक गईहोगी ,कितनी गर्मी पड़ रही है। बाद में खाना भी खाना है।' लक्ष्मी दादी के प्यार भरे व्यवहार से मुझे अपनी दादी की याद हो आई। मुझे उन दोनों मे कोई अंतर नजर नहीं आ रहा था।
कुछदेर बाद दादी उनके कमरे से एक बॉक्स उठा लार्ईं।' मुझे कुछ दिखाना है तुम्हे।' बॉक्स खोलते हुए वे बोलीं। शायद मम्मी पापा ने सुबह उनको मेरी रुचियों के बारे में बता दिया होगा,मैनें सोंचा। सतत्तर साल की हो चुकी दाडी को चश्मा लगता है,हाथ भी काँपते हैं,आखिर क्या दिखाना चाहतीं हैं वे। मैं ध्यान से उनके बकसाई को देख रही थी।
बहुत सी ड्राइंग कॉपियां निकाल कर उन्होने मेरे सामने रख दीं। मैने एक कॉपी के पन्ने पलटे तो देखा मेरे सामने रामकथा के वे प्रसंग उपस्थित हो गए थे जो मैंने गर्मियों की छुटि्टयों में अपने दादाजी से रात को घर की छत पर लेटे-लेटे नींद मे जाने से पहले सुने थे। देखते-देखते जब एक पेज जल्दी में पलट गया तो दादी ने याद दिलाया-'बेटा देखो तुमने हनुमानजी की पूँछ जलाने वाला चित्र तो देखा ही नही।'इसी तरह वे बड़ी रुचि से अपनी ड्राइंग की हुई कॉपियाँ दिखाती रहीं।किसी कॉपी में कृष्ण लीला के दर्शन हो रहे थे तो किसी में शिव महिमा छाई हुई थी ।दादी की कलाकारी पर मैं मुग्ध हो चुकी थी। शायद मैं अब उनकी फैन बन गई थी। भावावेश में मैने कहा-' दादी आप तो बहुत अच्छी चित्रकार हैं,स्कूल-कॉलेज में तो आपको बहुत पुरस्कार मिले होंगे !'
दादी ने एक रहस्यमयी मुस्कुराहट बिखेरते हुए कहा-' बेटा मैंने तो बचपन से लेकर बुढ़ापे तक कभी चित्रकारी नही की थी बस पिछले दो-तीन साल से ही यह शौक लगा है।' मैं चकित थी कि इस उम्र मे ऐसी खूबसूरत पेंटिग बनाना आख़िर दादी के लिए कैसे संभव हुआ होगा।मेरा मन जिज्ञासा से भर गया था ।
घर आकर मैने पापा से पूछा ' सुना है कि उम्र के साथ हमारी इंद्रियां हमारा साथ छोड़ने लगतीं हैं फिर लक्ष्मी दादी में इतनी जीवटता और प्रतिभा अचानक कैसे विकसित हो गई? कैसे वे इतने सुंदर चित्र बना लेतीं हैं?'
इस पर पापा ने जो बताया वह मेरे लिए और प्रेरणास्पद एवं उत्साहजनक रहा। पापा ने बताया लगभग पचहत्तर की उम्र के बाद लक्ष्मी दादी को लगने लगा कि वे बीमार हैं ,न जाने कौन-कौन सी बीमारियों के हो जाने के भ्रम और चिंता ने उन्हे सचमुच परेशान कर दिया। उनके जीवन का वह एक कठिन दौर था। असल में बीमारी मन की थी,मन बीमार था उनका।करने को कुछ नहीं होने के कारण जीवन दिशाहीन हो गया था ।जीने का कोई मकसद उनके सामने नही रह गया। ऐसे में बैचेनी होना स्वाभाविक थी। उन्ही दिनों पापा का मिलना लक्ष्मी दादी से हुआ। पापा ने उन्हे समझाया कि वे अपना मन किसी काम में लगाएँ,व्यस्त रहें और मस्त रहें,अपने को बीमार मानना छोड़ दें। कुछ समय बाद दिवाली आई,पूजा का समय हो रहा था,गणेश लक्ष्मी का चित्र इतना अधिक संभालकर रखा गया था कि मिल ही नही रहा था। लक्ष्मी दादी ने पोती की ड्रॉइंग कॉपी उठाई और गणेश,लक्ष्मी और सरस्वती के चित्र बना डाले।
घरवाले सब चकित से दादी के कारनामे को देखते रह गए।पापा की बात को दादी ने बहुत गंभीरता से लिया था और उसी दिन से पोती की पेंसिल से ड्रॅाइंग का अभ्यास शुरू कर दिया था।व्यस्त रहकर मस्त रहने का उपाय करके जीवन को दिशा दी और वृद्धावस्था में शानदार और सुन्दर चित्र बनाकर अपनी सक्रियता का उदाहरण प्रस्तुत कर दिखाया। लक्ष्मी दादी की रंगीन कलम अभी रुकी नहीं है पन्नों पर ही नहीं स्वयं के तथा मिलने जुलने वालों के जीवन में भी खुशियों के रंग भरने का क्रय अभी जारी है । लक्ष्मी दादी की जीवटता और लगन ने मेरे मन में उमंग का जो अद्भुत इंद्रधनुष बिखरा दिया है,सदैव मुझे प्रेरित करता रहेगा ।
एकता कानूनगो
यह संस्मरण नईदुनिया समाचार पत्र के 'नायिका' परिशिष्ठ में प्रमुखता से प्रकाशित हुआ है। बधाई।
ReplyDeleteThank u Papa
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