सामान्यत: लोग अध्यापन कार्य को बहुत हल्के रूप मे लेते हैं। जैसे ही पढाई समाप्त होती है हर कोई कहने लगता है ,बस अब कहीं न कहीं नौकरी पर लग जाओ, और कुछ नही तो किसी स्कूल या घर पर ही बच्चों की ट्यूशन लेने लगो। ऐसा कहते समय यह कभी नही सोंचा जाता कि वह व्यक्ति इस कार्य के लिए उपयुक्त है भी या नही।
जैसे ही मैने अपनी एमबीए की पढाई पूरी की,मेरे सामने भी इसी प्रकार के सुझाव आने लगे। दरअसल आर्थिक मन्दी के इस दौर मे मेरा दुर्भाग्य रहा कि कॉलेज से सीधे कैम्पस सिलेक्शन नही हो सका था। हर कोई कह रहा था-देखो कितने सारे स्कूल,कॉलेज मशरूम की तरह पैदा हो गए हैं,क्यों न शिक्षक के लिए आवेदन कर देते हो, कोई मन्दी का प्रभाव नही है, बस जाओ,पढाओ और कमाओ..।
हाँलाकि बात बहुत व्यावहारिक थी, जीवन वाकई बडा सहज हो सकता था,लेकिन मै थोडे असमंजस मे आ गई। सोचने लगी –क्या वाकई मै टीचर बनने की योग्यता रखती हूँ? मैने अनेक समाचार पत्रों मे शिक्षकों की आवश्यकता वाले विज्ञापनो पर नजर डाली। कई स्कूलों के लिए अच्छे शिक्षकों की तत्काल जरूरत थी। कहीं विषय विशेष मे डिग्री किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से चाहिए थी तो कहीं कुछ अनुभव आवश्यक था। बस इतना काफी था, बाकि साक्षात्कार समिति को निर्धारित करना था। किसी ने यह भी बताया कि जिस कॉलेज से एमबीए किया है उसी कालेज मे पढाने लग जाओ।
अपने ही कॉलेज मे पढाने के सन्दर्भ मे मेरा कुछ अच्छा अनुभव नही रहा था। जब मै अपने कॉलेज मे पढती थी उसमे उस साल ही अपनी पढाई पूरी करनेवाली गोल्ड मेडल प्राप्त करने वाली हमारी सीनियर को हमारी शिक्षिका बना दिया गया था। इतनी प्रतिभाशाली होते हुए भी पूरी कक्षा का मन उनके पीरियड मे बिलकुल नही लगता था। कभी-कभी लगता था कि उनकी क्लास का बहिष्कार कर दिया जाए लेकिन गुरू को ईश्वर मानने के संस्कारों ने रोके रखा। आंतरिक मूल्यांकन के अंकों तथा उपस्थिति के चक्कर मे कक्षा मे बने रहने की मजबूरी भी होती थी। सच तो यह लगता था कि ज्ञान प्राप्त करने के लिए तो कोचिंग क्लास है ही। छात्रो के साथ-साथ टीचर भी अधिक व्यावहारिक हो गए लगते हैं। पढाओ और कमाओ, थोडा यहाँ पढाओ बाकि कोचिंग से कमाओ। शायद यही समीकरण हर शिक्षण संस्थान मे आम हो गया है।
मेरा मानना है कि एक तरह से से यह अपराध ही होगा कि अपनी सुविधा और लाभ के लिए विद्यार्थियो का इस तरह नुक्सान किया जाना चाहिए। कम से कम शिक्षा जगत मे तो गुरुओं की महत्ता को बनाए रखा जाना चाहिए। शिक्षकों की नियुक्ति के लिए सम्पूर्ण योग्यता का आकलन मात्र डिग्रियों के आधार पर करना बिल्कुल उचित नही कहा जा सकता । छात्रों के समग्र विकास तथा उनकी जीवन शैली को सार्थकता प्रदान करने की क्षमता को देखकर ही इस पेशे मे सेवाओं का अवसर दिया जाना शायद उचित होगा।
बार-बार यही प्रश्न सामने आ जाता है कि समर्थ शिक्षण संस्थाओं की उपलब्धता के बावजूद कोचिंग कक्षाओं की आवश्यकता ही क्यों होना चाहिए? यदि यह मान भी लिया जाए कि कमजोर विद्यार्थियों को तैयार करने के लिए यह जरूरी है तो फिर क्या कारण हैं कि प्रावीण्यता रखने वाले बच्चे भी क्यों वहाँ जाने के लिए विवश हो गए होते हैं। यह किस बात की ओर संकेत कर रहा है, अच्छी तरह समझा जा सकता है। भारी फीस लेने और बेहतर सुविधा देनेवाले संस्थानो मे आखिर ऐसी क्या कमी रह जाती है कि विद्यार्थियों को दोहरी मेहनत और अधिक खर्च के लिए विवश होना पडता है।
बात सीधी सी है कि जो काम सबसे ज्यादा ईमानदारी और समर्पण तथा निष्ठा की माँग करता है उसे ही सबसे आसान एवम सहज मानकर गम्भीरता से नही लिया जा रहा। एक माँ जैसे बच्चे को जन्म देती है उसी प्रकार एक शिक्षक उसके व्यक्तित्व को बनाने का काम करता है। शिक्षक का व्यवहार, आचरण और उसके व्यक्तित्व का प्रभाव अपने छात्रों पर निश्चित ही असर डालता है। सूचना क्राँति के इस जमाने मे भले ही सब कुछ इटरनेट के जरिए प्राप्त किया जाना सम्भव बना दिया गया हो किंतु कुछ बातें अभी भी साथ साथ बैठकर, सामूहिकता के साथ ही सीखी और सिखाई जाना सम्भव होगा।
अच्छा शिक्षक वही होगा जिससे हर पल छात्रों को कुछ न कुछ मिलता रहे वह चाहे जीवन जीने की कला हो अथवा कोर्स की कोई परिभाषा, उसका व्यक्तित्व ऐसा हो जिसमे छात्रों को आस्था और विश्वास व्यक्त करने मे कोई संकोच न हो। उसकी अभिव्यक्ति अनुकरणीय हो, सही मायने मे वह हीरो हो अपने छात्रो के बीच । विद्यार्थी उसमे अपना एक रचनात्मक दोस्त और पथप्रदर्शक देख सकें।
मेरा मानना है कि यह काम इतना आसान भी नही है। एक युवा के तौर पर मैं अपने विचार इस आकाँक्षा से प्रकट कर रही हूँ कि हम जैसे जो युवा दोस्त, शिक्षक जैसे महत्वपूर्ण एवम पवित्र दायित्व के निर्वाह के लिए प्रस्तुत होना चाहते हैं एक बार अपनी डिग्री और अपने अंत:करण को जरूर खंगाल लें। क्या सचमुच शिक्षक मे आवश्यक गुणों के कुछ रजत कण बिखरकर सामने दिखाई देते हैं ? यदि ऐसा होता है तो निश्चित ही यह दायित्व हमारे लिए उपयुक्त होगा अन्यथा शायद हम बेहतर समाज के लिए कुछ ठीक नही कर सकेंगे।
प्लीज वेकअप !
एकता कानूनगो
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