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Friday, March 16, 2012

रखवाली

कॉलोनी के बीचों-बीच अब तक बचा हुआ खेत सभी के आकर्षण का केन्द्र बना हुआ था . आकर्षण तब और बढ़ गया जब पता चला कि खेत में चने बोए गए हैं.
संपन्न रहवासी रोज उस खेत की तरफ टक-टकी लगाये हुए रहते. अधेड उम्र का एक आदमी खेत की रखवाली बड़ी मेहनत से किया करता था. दिन भर खेत में चक्कर लगाता और रात को खेत के बीचों-बीच खटिया डालकर सो जाता. थोड़े ही दिनों में पौधों में चने की बालियाँ दिखाई देने लगीं. सभी रहवासियों के मन खिल उठे .

चने की फसल देख कर सबके मुँह में पानी आने लगा. छोड़ (हरे चने) खाने के मोह में वे अपने को रोक नहीं सके और एक दिन खेत के चौकीदार से कह ही दिया -'दादा थोड़े चने हमें भी दे दो.' इस पर गरीब चौकीदार ने विनम्रता से कहा –' मैं कैसे दे दूँ बहन जी मैं तो नौकर आदमी हूँ , मालिक आएं तब उनसे बात कर लेना आप लोग.'
उसके इस उत्तर की कल्पना भी कॉलोनीवासियों ने नहीं की थी. एक महिला ने अपनी आवाज़ को थोड़ा ऊँची करते हुए कहा –' अरे मुफ्त में थोडे ही ले रहे हैं , रुपए दे कर लेंगे ,तेरा भी फायदा हो जायेगा.' सबको लग रहा था कि इस जमाने का सबसे प्रभावी हथियार चौकीदार पर सही वार कर सकेगा. लेकिन यह बहुत अचंभित करनेवाली बात थी जब चौकीदार ने पहले की तरह कॉलोनीवासियों की मांग को ठुकराते हुए धीरे से लेकिन दृढता से कहा-' साहब बेईमानी करके मैं ऊपरवाले को क्या जवाब दूंगा.'

अनपढ़ चौकीदार की बात संपन्न और शिक्षित कॉलोनी वालों की समझ से बाहर ही थी.मुँह बिचकाकर उन्होंने अपने-अपने घरों का रुख कर लिया. चौकीदार ने अपने भीतर जो चना अब तक बचा रखा था शायद उसके लिए खेत की रखवाली से भी अधिक महत्वपूर्ण था.


एकता कानूनगो

2 comments:

  1. बहुत अच्छा लिखा , खास कर के लेख का समापन बहुत ही सटीक है .

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