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Sunday, January 5, 2014

नजरिया हम भी बनेंगे विकसित देश अगर... !

नजरिया 

हम भी बनेंगे विकसित देश अगर... ! 

किताबों में कई बार पढ़ा था विकासशील देश और विकसित देश। भारत एक विकासशील देश है। पहली बार अवसर मिला इस  अंतर को बारीकी से समझने का ।  वाकई खाई बहुत गहरी और बडी है ।  यक़ीनन मेरा यह वाक्य आपको सकारात्मक नहीं लगेगा पर समझ नहीं आता कि हमारे जैसा  विकासशील देश वहां तक कैसे पहुचेगा और शुरुआत कहां से करेगा।  

पिछले दिनों अपने छोटे से प्रवास में भी विकसित देश की कई बातें सीखने और अपनाने जैसी लगी  लेकिन  जिसने बात ने मुझे गहरे से छुआ वो था वहां का समझदारीपूर्ण खुलापन।  जो हर इंसान को अपने हिसाब से जीने की आजादी देता है वो देश ,और सबसे अच्छी बात मुझे महिलाओं की स्थिति लगी।    सच कहूं  यह बात आपको तीखी लग सकती है वहाँ महिला सिर्फ देवी नहीं है वो इंसान भी है उसे भी जीना है। एक ओर जहाँ भारत में उसे भगवान का दर्जा देकर जिम्मेदारियों में जकड सा लिया गया है,वहीं दूसरी ओर उसके अपने पहनावे में बदलाव लाने को कहा जाता है,उस पर ड्रेस कोड लागू करने के प्रयास होते रहते हैं। स्त्री स्वतंत्रता की बात तब तक बेमतलब होगी जब तक की हम अपनी सोच में बदलाव नही ला पाते।   असल में इसी  बदलाव की वास्तविक जरूरत  है।   स्त्री और उससे जुडी बातों को बगैर किसी पूर्वाग्रह के साथ समझा जाना एक जरूरी कदम होगा।  इसके लिए हमें अपने विचारों और सोच में एक खुलापन भी लाना होगा. इस खुलेपन से मेरा आशय फूहडता और् अनैतिकता से कतई नही है। . 

आजादी के बाद भारत ने कई मुकाम हाँसिल किये हैं क्योकि उसके अन्दर एक मज़बूत इरादा था पर समय के साथ वो शायद कमजोर और मलिन होता जा रहा है।  हम सब दौड लगा रहे है पर सबकी दौड केवल अपने स्वार्थ तक ही  सिमित रह गई है। भारत की अच्छाइयों  को नकारा नहीं जा सकता है। मैं  नतमस्तक हूँ और उन पर मुझे गर्व भी है।  हमारे अंदर बहुत संभावनाए भी है  लेकिन  हम छोटी छोटी फिजूल की बातों को लगाकर अक्सर अपना समय व्यर्थ में गंवातें हैं। प्रगति और आकडों से किसी भी देश का विकास देखना बहुत आसान है पर यह समझना भी बहुत जरूरी होगा कि  क्या  उस देश में सभी को समान अधिकार मिल रहा है बगैर किसी लिंग,जाति या आर्थिक भेद भाव के।  .आज  हमारे समाचार पत्र  और न्यूज़ के कंटेंट पर जरा ध्यान दें तो एक ओर वे  महिला उत्त्पीडन की रसमय  की कथा सुनाते नजर आते हैं तो  दूसरी तरफ देखे तो मीडिया में बाबाओं  और अन्धविश्वास फैलाने  वाली खबरों की बिसात जमी हुई है। अगर बात करे अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए दोषारोपण करने की तो यह क्या वास्तविकता नही है कि जिन  दिग्गजों को  हमने अपना देश हवाले कर रखा है  वो कहां तक अपना काम ईमानदारी से कर रहे है।  देश में भ्रष्टाचार की नदी बहती दिखाई देती है. आखिर अन्ना को आन्दोलन क्यों करना पडा था।  ,अगर हर कोई अपना काम पूरी इमानदारी से कर रहा होता तो आज हमारा देश अभी तक विकसित देश हो ही गया होता।  कहते हैं हमारी आबादी हमरे विकास में बाधक है लेकिन जरा गौर कीजिए, इस देश को संभालने के लिए हमारे पास कितने हाथ मौजूद है। सकारात्मक रूप से देखें तो यह हमारी ताकत भी हो सकती है। नजरिया तो अन्तत: बदलना ही होगा। प्लीज वेक अप। 

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