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Tuesday, October 27, 2015

साप्ताहिक उपग्रह में . इस बार...सुनते रहिये ... हम और हमारे पड़ोसी एकता कानूनगो बक्षी

साप्ताहिक उपग्रह में . इस बार...
सुनते रहिये ...
हम और हमारे पड़ोसी
एकता कानूनगो बक्षी
एक रेडियो जोकी के रूप में कभी-कभी बहुत दिलचस्प अनुभव होते है. आकाशवाणी के हैदराबाद रेनबो चैनल पर ‘दिल की बात’ नाम से बहुत आत्मीय–सा कार्यक्रम होता है. किसी एक विषय पर श्रोताओं से बातचीत करते हुए फ़िल्मी गाने सुनाए जाते हैं. एक बुधवार को मैंने ‘हम और हमारे पड़ोसी’ जैसा आम विषय रखा था. मुझे बहुत आश्चर्य हुआ जब लोगों ने अपने वर्त्तमान पड़ोसियों के प्रति विशेष संतोष और आत्मीयता नहीं दर्शाई. हालांकि वे बरसों पहले रहे उनके पुराने पड़ोसियों से मधुर संबंधों का जिक्र जरूर करते रहे. बहुत से श्रोताओं को दुःख था की अब पड़ोसी एक दूसरे को जानते तक नहीं मदद करना तो दूर की बात है. पड़ोसी जैसे प्यारे रिश्ते में आई इस कमी पर ज्यादातर लोगों का मानना था की इसकी वजह सुविधाओं में वृद्धि तथा पर्याप्त धन की उपलब्धता है. हालांकि ये दोनों बातें किसी भी व्यक्ति के लिए सकारात्मक हैं मगर संबंधों के सन्दर्भ में ‘पड़ोसी’ जैसे रिश्ते का बलि चढ़ जाना गवारा नहीं हो सकता.
आज ओन लाइन सुविधाओं से हर चीज घर बैठे प्राप्त हो जाती है तब भला पड़ोसियों की क्या जरूरत. मगर ऐसा नहीं है सुख-दुःख के रिश्ते सबसे पहले हमारा पड़ोसी ही निभा सकता है. हम भी किसी के पड़ोसी होते हैं तो कोई और भी हमारा पड़ोसी होता है
.बहरहाल, एक दिलचस्प वार्तालाप यह रहा की जब मैंने अपने एक श्रोता से अपने सवाल के बारे में बोलने को कहा तो वह बोला- ‘मैडम हम तो जंगल में रहते हैं..हमारे तो पासवाले खेत का मालिक ही हमारा पड़ोसी है..जहां तक उससे रिश्ते की बात है..उसके खेत से सब्जियां चुरा लाते हैं..एक दिन उसने देख लिया खूब झगड़ा हुआ... रात को हमने सोंचा हमसे पाप हो गया है... वह भी हमारे आम चुरा लेता है मैडम.. कोई बात नहीं...!’ पर अब हम चोरी नहीं करेंगे मैडम, सच्ची! आपकी आवाज बहुत अच्छी है मैडम...! ‘फिर उन्होंने एक शायरी सुनाने को भी कहा. मैंने इजाजत दी तो उन्होंने बहुत ही ख़ूबसूरत पंक्तियाँ सुनाई. खेतों के बीच रहनेवाले पड़ोसियों के इस अनुभव पर मैं खिलखिला पडी.
पर यह तो बात सही है की जो मैं समझ रही थी बहुत सारे श्रोता अपने पड़ोसियों की भरपूर प्रशंसा करेंगे और उनके सहयोग के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करेंगे लेकिन अफसोस ऐसा नहीं हुआ. मुझे दुःख भी हुआ है. एक सवाल खडा है मेरे सामने..क्या सचमुच समृद्धि और प्रगति मानवीय रिश्तों का अवमूल्यन कर जाते हैं..सोचिये..और कुछ कहिये भी..!
एकता कानूनगो बक्षी
(रेडियो जॉकी,रेनबो चैनल ,आकाशवाणी,हैदराबाद)

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