कविता
उसका बड़ा दिन
उसका बड़ा दिन
माफ़ कीजिये
कि उसे याद नहीं रहा आज भी
कि आज बड़ा दिन है
बेखबर है वह कि
कौन थे हमारे स्वतंत्रता सेनानी
उसका दिल
उत्सव के जोश से नहीं भर रहा ज्यादा
हवाओं में गूँज रही किसी भी धुन और राग से
कौन थे हमारे स्वतंत्रता सेनानी
उसका दिल
उत्सव के जोश से नहीं भर रहा ज्यादा
हवाओं में गूँज रही किसी भी धुन और राग से
कोई और लय है उसके भीतर
जिसकी ताल पर थिरक रहा उसका मन और तन
जिसकी ताल पर थिरक रहा उसका मन और तन
तड़के ही ही निकल गया था यह योद्धा
बिना देखे आज की तारीख, वार और समय
रोज़ की तरह थी इसकी सुबह और उसका लक्ष्य
उसने तो सोचा ही नहीं कि आज गूंजेंगे नारे
और सारा अन्धेरा दूर हो जाएगा
शहद में डूबे शब्दों की रोशनी से
बिना देखे आज की तारीख, वार और समय
रोज़ की तरह थी इसकी सुबह और उसका लक्ष्य
उसने तो सोचा ही नहीं कि आज गूंजेंगे नारे
और सारा अन्धेरा दूर हो जाएगा
शहद में डूबे शब्दों की रोशनी से
नहीं जानता कि आज बड़ा दिन है
पढ़ी लिखी बहन लौट आई है मायके वापिस ।
माँ का ऑपरेशन कराना बाकी है अभी
रोटी के इंतजाम में आज भी जुटना ही पडेगा रोज की तरह
जानता नहीं
कितनी आजाद हवा में सास ले रहा है वह
माँ का ऑपरेशन कराना बाकी है अभी
रोटी के इंतजाम में आज भी जुटना ही पडेगा रोज की तरह
जानता नहीं
कितनी आजाद हवा में सास ले रहा है वह
अभी-अभी दो लड्डुओं का पैकेट थमा गया है कोई
जब उतरेगी मिठास भीतर
सूरज खोद लाएगा पहाड़ के बीचो बीच से ...
जब उतरेगी मिठास भीतर
सूरज खोद लाएगा पहाड़ के बीचो बीच से ...
एकता ...
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