स्टूडियो से ...
बचपन से लेकर अब तक बहुत से विषयों की किताबें स्कूल और कॉलेज में पढ़ी हैं. पर आज लगता है काश एक पीरियड में हिंदी सिनेमा के गीतों को भी पढ़ाया जाता. इन दिनों स्टूडियो में बैठे कभी दर्शन शास्त्र पढ़ रही हूँ ,कभी प्रकृति की सुन्दरता से अवगत हो रही हूँ तो कभी देशप्रेम की भावनाओं से भर उठती हूँ. कभी सूफी संगीत पर नतमस्तक हो जाती हूँ तो कभी झांझ मंझीरे की आवाज और ढोलक की थाप से लोकजीवन के रंग मुझे घेर लेते है. हर बार ऐसा लगता है की स्टूडियो के बाहर जब निकलूंगी तब एक बेहतर इंसान मेरे अंदर पाउगी. अपने भीतर असीम आत्मिक शान्ति महसूस करने लगती हूँ. ऐसे ही जीवन दर्शन से भरा एक गीत ज़रा आप भी सुने, जो क्या कुछ नहीं सिखा रहा.
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