बात ..
हमारे कुछ पर्व हमे अपनों के कितने करीब ले आते है .आज शरद पूर्णिमा में जैसे जैसे चाँद और रोशन होता जा रहा है अपनी दादी की याद और उनके साथ बिताए पल भी मुझे याद आ रहे है .आज होटल के इस कमरे में खिड़की से चाँद को देखते हुए मुझे पिछली बार की शरद पूर्णिमा याद आ रही है मम्मी से कह कर दूध को तब तक ओतवाय था जब तक की वो खीर से रबड़ी न बन जाए. छत पर जाली से उसे ढक कर १२ बजे तक उसका अमृत बनने का इंतज़ार किया इस बीच दादी के साथ हसी मजाक किस्से कहानियो और अंताक्षरी का दौर चलता रहा और फिर आँखों को और तेज़ बनाने के लिए चाँद की रौशनी में सूई में धागा पिरोना . दादी के साथ बिताए वो मस्ती भरे पल आज अमृत की ही तरह मुझ में उर्जा का संचार कर रहे है.
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