कविता
बचपन
बचपन
वो था यहीं कुछ पल पहले , अब मिल नहीं रहा .
यहीं आँगन में दादी की चोटी पर लगे रिबन से खेलते
तो दादा की कहानी में डूबते .. वो मम्मी के आँचल से तैरते हुए
पापा की मुस्कुराती आँखों में भविष्य के सुनहरे सपनों से झांक रहा था, आज मिल नहीं रहा कहीं
यहीं आँगन में दादी की चोटी पर लगे रिबन से खेलते
तो दादा की कहानी में डूबते .. वो मम्मी के आँचल से तैरते हुए
पापा की मुस्कुराती आँखों में भविष्य के सुनहरे सपनों से झांक रहा था, आज मिल नहीं रहा कहीं
मैंने खोजा उसे आम के पेड़ के पास , फिसल पट्टी के नीचे, रजाई में दुबके हुए
खिलौनों और किताबों से भरे कमरे में ,छत की मुंडेर पर .
बारिश में , सर्दी में , गर्मी में ,वो मस्तमौला, अल्हड कहीं मिल नहीं रहा ...
खिलौनों और किताबों से भरे कमरे में ,छत की मुंडेर पर .
बारिश में , सर्दी में , गर्मी में ,वो मस्तमौला, अल्हड कहीं मिल नहीं रहा ...
ढूँढा उस मनमौजी को समुद्र के तल तक, शितिज तक
पंछियों से पूछा , जल प्राणियों से पूछा..
पंछियों से पूछा , जल प्राणियों से पूछा..
अभी चहकने की आवाज़ आई थी कहीं से , शायद यहीं कहीं छुपा बैठा है वो ...
तैयारी में है अपनी अगली उड़ान की ..........
तैयारी में है अपनी अगली उड़ान की ..........
एकता
No comments:
Post a Comment