कविता
स्क्रीन से बिखरती खुशबू
(टीवी पर एक युवा किसान के इंटरव्यू को देखकर)
कहना मुश्किल है
कि कितनी बार अनुपस्थिती दर्ज कराई होगी उसने कक्षा में
दरवाज़े से सट कर बैठा वह
दरवाज़े से सट कर बैठा वह
स्कूल की आख़िरी घण्टी बजते ही सब से तेज दौड़ता हुआ
पहुंचता होगा अपने खेत पर
पाठ्यपुस्तक के पाठों के अलावा
कई और अध्याय भी जुड़े हुए थे उसकी किताब में
कोई अदृश्य हाथ उसे घड रहा था
लगातार कुदरत के चाक पर
माँ की थकान और पिता की कमरतोड़ मेहनत के
कई बीज अंकुरित हो रहे थे उसके भीतर
आज उसके पैर मजबूती से जमे हैं
पहाड़ खोद कर संवारी जमीन पर
ख्यात चैनल के समझदार एंकर को
ख्यात चैनल के समझदार एंकर को
आत्मविश्वास से आज
दे रहा है साक्षात्कार
उसके शब्दों में सुनाई दे रहा है कृषक जीवन का सार
विनम्रता और आदर से सराबोर सुरों से सजा संगीत
गूँज रहा है लहलहाती फसल के बीच
साहब यह फसल
छह महीने तक ज़िंदा रहती है फिर गुज़र जाती है
उसकी गंवई भाषा में मिट्टी और पसीने की महक आ रही है
उसकी गंवई भाषा में मिट्टी और पसीने की महक आ रही है
टीवी के स्क्रीन से निकली सुगंध से भर गया है मेरा ड्राइंग रूम.
एकता
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