कविता
महानता का ताज
महान नहीं हूँ
अपने हित साधने के लिए महानता का मुकुट न पहनाएं
बेटी हूँ , पत्नी हूँ , बहू हूँ और माँ भी
मगर सबसे पहले इंसान हूँ
प्रेम के बीज अंकुरित है प्राकृतिक रूप से भीतर
नमी ज्यादा है इसलिए बुझा पाती हूँ रिश्तों की आग
निकल पाती हैं नई कोंपलें सूखे बरगद में
दहलीज पार करते समय थरथरा गई आत्मा तक
जब बढ़ाया था पहला कदम
महानता का मुकुट जो पहना दिया समाज ने
उसका मान रखते हुए,
आज भी सुबह का सूरज और चिड़िया के बोल उसी तरह लुभाते है जैसे लुभाते थे जब महान नहीं
खुद एक छोटी सी चिड़िया थी
प्रेम से लबालब ज़रूर है मन, पर दोगली भाषा के शोषण से त्रस्त है
कभी माता की तरह पूजी जाती हूँ
कभी शोषण का शिकार बनती हूँ
कभी तुल जाती हूँ हलकी भाषा में
महान नहीं हूँ , इंसान हूँ
आपकी ही तरह
शरीर की जकड़न , मानसिक थकान
उत्साह , आशाएं और प्रतिभा सब कुछ समाया है
इंसान की तरह बुनियादी वज़ूद की लड़ाई लड़ती हूँ
हर दिन दूसरो को सभालते हुए खुद का रास्ता खोजती हूँ।
एकता...
महानता का ताज
महान नहीं हूँ
अपने हित साधने के लिए महानता का मुकुट न पहनाएं
बेटी हूँ , पत्नी हूँ , बहू हूँ और माँ भी
मगर सबसे पहले इंसान हूँ
प्रेम के बीज अंकुरित है प्राकृतिक रूप से भीतर
नमी ज्यादा है इसलिए बुझा पाती हूँ रिश्तों की आग
निकल पाती हैं नई कोंपलें सूखे बरगद में
दहलीज पार करते समय थरथरा गई आत्मा तक
जब बढ़ाया था पहला कदम
महानता का मुकुट जो पहना दिया समाज ने
उसका मान रखते हुए,
आज भी सुबह का सूरज और चिड़िया के बोल उसी तरह लुभाते है जैसे लुभाते थे जब महान नहीं
खुद एक छोटी सी चिड़िया थी
प्रेम से लबालब ज़रूर है मन, पर दोगली भाषा के शोषण से त्रस्त है
कभी माता की तरह पूजी जाती हूँ
कभी शोषण का शिकार बनती हूँ
कभी तुल जाती हूँ हलकी भाषा में
महान नहीं हूँ , इंसान हूँ
आपकी ही तरह
शरीर की जकड़न , मानसिक थकान
उत्साह , आशाएं और प्रतिभा सब कुछ समाया है
इंसान की तरह बुनियादी वज़ूद की लड़ाई लड़ती हूँ
हर दिन दूसरो को सभालते हुए खुद का रास्ता खोजती हूँ।
एकता...
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