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Friday, June 30, 2017

शतरंज को शिकस्त

कविता
शतरंज को शिकस्त


शतरंज के खेल की बिसात सजी हुई है
हर चाल का जवाब दूसरी चाल से
पूरी रणनीति के बाद

विजय की अभिलाषा लिए
धीमी रफ्तार से आगे बढ़ता है प्यादा
जो आगे बढ़ा एक बार तो पीछे हटना नामुमकिन
पूरे रास्ते मौत से जूझता
अगर पहुच गया सीमा पार
तो मुकुट पहना दिया जाएगा उसके माथे पर

कुछ सैनिक सीधी चाल चलते हैं
तो कोई बस छलांग जाते हैं बाधाएं
डेढ़ कदम उछलकर
कुछ सुनियोजित और भारी कदम रखते
सबकी नजर उनके हर एक कदम पर

परास्त करने का खेल जारी रहता है
जैसे कोई शीतयुद्ध चल रहा हो खामोशी के साथ

तनाव से भरे माहौल में अचानक
खेल के नियम से बिल्कुल विरुद्ध
स्नेह की रणनीति से भरी एक चाल
गंभीरता के बादलों को जब भेद देती है
चहक और उल्लास की बारिश से
भीग जाती है बिसात

अनुभवी दादा
अपनी छोटी सी पोती से
परास्त हो गए हैं अभी अभी

शतरंज की बिसात अभी भी जमी है
वज़ीर, घोड़ा ,हाथी,ऊंट अचरज से भौचक ताक  रहे है खिलाड़ियों को

किसी की किलकारी ने शायद
मात दे दी है शतरंज को।

एकता 

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