संस्मरण
वो कागज की कश्ती, वो गलियों की नाली
एकता कानूनगो बक्षी
सूखे पत्तो,कागज़ों और धूल से बंद पड़ी वो नाली, पहली बारिश में ही फिर से खुल कर बहने लग गयी। कचरे और मिट्टी की कई परतों में दबी नाली क्या बही जैसे स्मृतियां बह निकली, बारिश के पानी के साथ साथ।
थोड़ी मटमैली, थोड़ी पारदर्शी, बूंदों के जलतरंग की गूंज लिए मानो कोई धारा बह निकली मेरे अन्तःकरण में...
विकास की दौड़ में पूरा शहर तब्दील हो गया था कांक्रीट के पहाड़ों में। ऐसे में उस सकरी सी नाली का मिल जाना.. शहर में बचपन के किसी दोस्त से मुलाकात होने जैसा महसूस हुआ।
हमारे शहर में जब भी मूसलाधार बारिश होती थी, कई दिनों तक लगातार झमाझम बरसता रहता पानी। कुछ समय के लिए सडक पर पानी भी भर जाता था और सड़क नज़रो से ओझल हो जाती।
बरसात में भीगते राहगीर कुछ देर इंतज़ार करते रास्ता साफ होने का और फिर छोटी सी नाली बड़ी ही मुस्तेदी के साथ अपने काम को अंजाम देती। पूरी सड़क का पानी धीरे धीरे सकरी नाली से होकर बह जाता। राहगीरों को रास्ता दिखने लगता, बिना तकलीफ का सामना किये सरपट गाड़िया और कदमताल कर रहे लोग बारिश का मज़ा लेते भीगते भागते नाली के बहते पानी को निहारते हुए आगे बढ़ जाते ।
इस नाली का आखरी हिस्सा पास के खुले मैदान पर खुलता था । मुझे याद है बारिश के बाद वहां हरी दूब उग आया करती थी। यह हरा चारा बहुत दिनों तक पशुओं के आहार में उपयोग होता था।
हरी घास और उसके बीच बरसाती पानी के पोखर बन जाते जहाँ अक्सर सफेद बगुले आया करते थे। बच्चे वहां खूब फुटबाल खेलते थे। बड़ा ही मनभावन नज़ारा होता था वहां। कुछ लोगो ने उसका नाम ही 'तोहफा गार्डन' रख दिया था। हर बरसात में बिना खर्च किये तोहफे के रूप में जो मिल जाया करता था वो प्यारा सा मखमली लॉन।
सकरी सी उस नाली का अपना जादू और आकर्षण था सबके लिए। छोटे बच्चो की नदी बन वह जैसे खूब इतराती थी। कभी कागज़ से बनी नावों ,जहाजों को पार लगा देती थी, तो कभी तेज बहाव में अपने गर्त में ले लेती थी । कीड़े मकोड़ो को हम कागज़ की बनी कश्ती में बैठाकर नदी के इस सीरे से अगले सीरे याने तोहफा गार्डन तक पहुचाने की प्रतियोगिता सी करते थे। बड़ा मजा था। खूब मस्ती थी।
आज जब फिर से मूसलाधार बारिश हो रही है तो हाथ में पकड़े कागज़ से अचानक ही स्मृतियों की एक नाव बन गयी। उस नाव में बैठकर मैं जैसे तोहफा गार्डन की सैर भी कर आयी हूँ।
इन दिनों शहर के अंदर खुली नालियाँ मुश्किल से ही दिखती हैं। पूरी सड़क ही नदी बन जाती है। मेरी छोटी सी कागज़ की नाव इतनी बड़ी नदी से होकर गुज़रने में अक्षम हो गई है । इस नाली में अगर अपनी कश्ती तेरा भी दूँ तो शायद ही तोहफा गार्डन तक का सफर वह पूरा कर पाए....................... ..
सूखे पत्तो,कागज़ों और धूल से बंद पड़ी वो नाली, पहली बारिश में ही फिर से खुल कर बहने लग गयी। कचरे और मिट्टी की कई परतों में दबी नाली क्या बही जैसे स्मृतियां बह निकली, बारिश के पानी के साथ साथ।
थोड़ी मटमैली, थोड़ी पारदर्शी, बूंदों के जलतरंग की गूंज लिए मानो कोई धारा बह निकली मेरे अन्तःकरण में...
विकास की दौड़ में पूरा शहर तब्दील हो गया था कांक्रीट के पहाड़ों में। ऐसे में उस सकरी सी नाली का मिल जाना.. शहर में बचपन के किसी दोस्त से मुलाकात होने जैसा महसूस हुआ।
हमारे शहर में जब भी मूसलाधार बारिश होती थी, कई दिनों तक लगातार झमाझम बरसता रहता पानी। कुछ समय के लिए सडक पर पानी भी भर जाता था और सड़क नज़रो से ओझल हो जाती।
बरसात में भीगते राहगीर कुछ देर इंतज़ार करते रास्ता साफ होने का और फिर छोटी सी नाली बड़ी ही मुस्तेदी के साथ अपने काम को अंजाम देती। पूरी सड़क का पानी धीरे धीरे सकरी नाली से होकर बह जाता। राहगीरों को रास्ता दिखने लगता, बिना तकलीफ का सामना किये सरपट गाड़िया और कदमताल कर रहे लोग बारिश का मज़ा लेते भीगते भागते नाली के बहते पानी को निहारते हुए आगे बढ़ जाते ।
इस नाली का आखरी हिस्सा पास के खुले मैदान पर खुलता था । मुझे याद है बारिश के बाद वहां हरी दूब उग आया करती थी। यह हरा चारा बहुत दिनों तक पशुओं के आहार में उपयोग होता था।
हरी घास और उसके बीच बरसाती पानी के पोखर बन जाते जहाँ अक्सर सफेद बगुले आया करते थे। बच्चे वहां खूब फुटबाल खेलते थे। बड़ा ही मनभावन नज़ारा होता था वहां। कुछ लोगो ने उसका नाम ही 'तोहफा गार्डन' रख दिया था। हर बरसात में बिना खर्च किये तोहफे के रूप में जो मिल जाया करता था वो प्यारा सा मखमली लॉन।
सकरी सी उस नाली का अपना जादू और आकर्षण था सबके लिए। छोटे बच्चो की नदी बन वह जैसे खूब इतराती थी। कभी कागज़ से बनी नावों ,जहाजों को पार लगा देती थी, तो कभी तेज बहाव में अपने गर्त में ले लेती थी । कीड़े मकोड़ो को हम कागज़ की बनी कश्ती में बैठाकर नदी के इस सीरे से अगले सीरे याने तोहफा गार्डन तक पहुचाने की प्रतियोगिता सी करते थे। बड़ा मजा था। खूब मस्ती थी।
आज जब फिर से मूसलाधार बारिश हो रही है तो हाथ में पकड़े कागज़ से अचानक ही स्मृतियों की एक नाव बन गयी। उस नाव में बैठकर मैं जैसे तोहफा गार्डन की सैर भी कर आयी हूँ।
इन दिनों शहर के अंदर खुली नालियाँ मुश्किल से ही दिखती हैं। पूरी सड़क ही नदी बन जाती है। मेरी छोटी सी कागज़ की नाव इतनी बड़ी नदी से होकर गुज़रने में अक्षम हो गई है । इस नाली में अगर अपनी कश्ती तेरा भी दूँ तो शायद ही तोहफा गार्डन तक का सफर वह पूरा कर पाए.......................
एकता कानूनगो बक्षी
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