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Tuesday, December 12, 2017

जनसत्ता 20 जून 2017

लेख
रोजगार की तलाश में पूरक समुदाय
एकता कानूनगो बक्षी

हमारा देश अपेक्षाकृत घनी आबादी वाला देश है.  अमेरिकाकनाडा और अधिकाँश उन्नत देशों में आबादी का घनत्व इतना अधिक नहीं है जितना की हमारे कई बड़े प्रदेशों में है. यह भी एक सच्चाई है कि हमारी अधिकाँश आर्थिक,सामाजिक समस्याएँ भी  इसी एक कारण से सामने आ खडी होती हैं. जितने लोग हैं उतना रोजगार नहीं है. यह नहीं है कि काम की कोई  कमी है हमारे यहाँ. डिप्लॉयमेंट और श्रम का असमान वितरण भी है जिसके कारण किन्ही क्षेत्रों में बहुत रोजगार दिखाई देता है और कहीं बेरोजगारों की विशाल फ़ौज निरर्थक और अनुत्पादक गतिविधियों में उलझतीजूझती दिखाई देती है.

सकारात्मक नज़रिए से अगर हम देखे तो हमारी आबादी हमारी ताकत भी है .  सही तरह से किया गया मानव  संसाधन प्रबंधन हमारी प्रगति को पंख लगाने में सक्षम हो सकता है. ये बात हम सब जानते हैं और इस कथन को अनेक स्तरों पर दोहराया जाता रहा है.  निसंदेह बेरोजगारी हमारे देश की एक जटिल समस्या है. सरकारों का ध्यान लगातार इस बात पर रहता भी है. लेकिन मै अपनी बात लम्बी लाइन में लगे उन बेरोजगार युवाओं की नहीं कर रही. मै यहाँ उन लोगो पर ध्यान आकर्षित करना चाहती हूँ जिनके पास किताबी ज्ञान के साथ साथ अनुभव भी है. जिन्होंने जीवन में बहुत कुछ हासिल किया है. जो कुछ करना चाहते हैंजो शारीरिक रूप से सक्षम हैंदुर्भाग्य से किन्ही कारणों वश सेवा की मुख्य धारा में प्रवेश नहीं कर पाए. उनके प्रबंधन पर भी मानव संसाधन की दृष्टि से सोचा जाना चाहिए..

ऐसे लोगो की बात करें जिनसे आज बहुत कुछ की उम्मीद हो सकती  उनमें सबसे पहले उन गृहणियो का जिक्र हो सकता है जिन्हें   पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाने के लिए अपना काम बीच में ही छोड़ना पडा या फिर उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी किन्ही कारणों से  अपना व्यवसाय नहीं कर पाईं. नौकरी की उम्र से आगे निकल गए वह युवतर वर्ग है जो हमारे समाज के विकास को गति दे सकता है.  दिन भर में मात्र कुछ घंटो  के उनके योगदान से कितने ही  उपेक्षितों तक शिक्षा और जागरूकता का संचार किया जा सकता है  जिनके पास स्कूल जाने तक का समय नहीं.  हालांकि ऐसी कई नवोन्मेष कल्याणकारी योजनाएं केंद्र और प्रदेश सरकारें समय समय पर लाती भी रही हैं लेकिन कितना काम हो पाता है ,इसका ठीक ठीक आकलन और परिणाम नजर नहीं आते. लेकिन इस कदम से इस महत्वपूर्ण वर्ग के अन्दर आत्मसम्मान , आत्मसंतुष्टि के बीज भी बोए जा सकते है .

ऐसे भी कई स्वैच्छिक समूह समाज में हैं जिन्होंने  इस तरह के कामो में अपना योगदान देकर मिसाल कायम की है. कई महिला कार्यकर्ता इस तरह के काम में जुटी हुई हैं.  अपने घर के काम और पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए तंग और मलीन बस्तितों में जाकर देश और समाज के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं . फिर भी एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जहां महिलाओं की प्रतिभा और क्षमता को उनकी उबाऊ दिनचर्या के कारण जंग लगने लगता है .  और वो ऐसी गतिविधियो से जुड़ने लग जाती हैं जिनका उद्देश्य मात्र समय काटना भर होता है. क्या उनकी इस ऊब को उनकी रूचि में रूपांतरित करके उत्पादक गतिविधि में बदल दिए जाने की दिशा में नहीं सोचा जाना चाहिए

दूसरा वर्ग जो याद आता है वह है वरिष्ठ नागरिकों का वर्ग. वो अनुभव के मामले में बहुत आगे है.सेकंड इनिंग के लिए तैयार आत्मविश्वास से भरे हुए नए युवाओं की.  सामान्यतः रिटायरमेंट के बाद पूरी तरह से इनके योगदान और जज्बे को अनदेखा किया जाता है, “अब आप आराम कीजिये बहुत काम किया जीवन भर इस तरह उनके जोश को ठन्डे कर देने वाले वाक्य इन्हें सुनाये जाने लगते हैं. जबकि असल में अब तक  जिस पेड़ को इतने साल से उन्होंने सींचा होता है असली फल तो अब आने शुरू होते हैं और  जब वो फल अगर समाज कल्याण के काम आये तो फिर मिठास दोगुनी होजाना तो तय है.

हांलाकि ऐसी बुजुर्गों की कई संस्थाएं हैं जो उम्र को धता बताते हुए निरंतर समाज सेवा के कार्यो में संलग्न है. ऐसे बुजुर्ग-युवाओं को क्रियाशील देखते है तो मन प्रेरणा से भर जाता है. वो  किसी भी युवा से कम नही दिखते है
हमे सबसे ज्यादा ज़रूरत समाज में हर व्यक्ति के कल्याण और सफल जीवन में हमारे स्वयं सिद्ध नैतिक मूल्यों के संरक्षण की चेतना जाग्रत करने की भी है. हमारी असली पूरक शक्तियों को अक्सर हम अनदेखा कर देते हैं.
   
नई व्यवस्था में हर शहर,गावबस्ती के प्रत्येक रहवासी का पूरा ब्यौरा दस्तावेजों में दर्ज होने की प्रक्रिया आधार आदि माध्यमों से प्रगति पर है. रोजगार के लिए आवेदक युवाओं के साथ-साथ अन्य व्यक्तियों के नियोजन पर भी उम्र , शिक्षा  और अनुभव के अनुसार उनके द्वारा समाज के विकास के लिए स्वैच्छिक काम करने की सुविधा और काम की उपलब्धता पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए.

असल में यंग इंडिया का सपना पूरा होना तभी संभव है जब हर वर्ग की सोच में जोश और उमंग की तरंग पैदा हो सकेहर नागरिक समाज के अच्छे कार्यो में गतिशील और भागीदार बनाने के लिए अपने को समर्पित कर सके. 

एकता कानूनगो बक्षी

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