दुनिया मेरे आगे
बाजार में घर
एकता कानूनगो बक्षी
प्रदूषण से हमारा सभी का बरसों से सामना होता रहा है। आरंभ में यह हर क्षेत्र में लगभग शून्य रहा होगा लेकिन जैसे जैसे मानव सभ्यता का विकास होता गया वैसे वैसे प्रदूषण भी अपने डैने फैलाता गया।
इस मामले में मैं अपेक्षाकृत थोड़ी सौभाग्यशाली रही। बचपन से मेरा घर आम घनी बस्ती से अलग अक्सर प्रदूषण से कम प्रभावित और प्रकृति के करीब बना रहा है ,ऐसे में वायु और ध्वनि प्रदूषण से ज्यादा परेशान होने की बहुत जरूरत नही पड़ी।हालांकि मानसिक प्रदूषण से अपने आपको बचाना हर स्थिति में मुश्किल होता है क्योंकि दूसरो के अच्छे बुरे विचारों का अच्छा,बुरा असर भी मानव सभ्यता के विकास से आज आपके पास सेकण्ड्स में फ़ोन, इंटरनेट,सोशल मीडिया के माध्यम से पहुंच ही जाता है। शायद इसीलिए पुराने जमाने में मौन व्रत की प्रथा का जन्म हुआ होगा जो काफी लाभकारी भी है और ऐसे में मोबाइल में उपस्थित फ्लाइट मोड की भूमिका भी उल्लेखनीय है ।
कुछ दिनों पहले हम अपने ही शहर के दूसरे छोर की कॉलोनी में शिफ्ट हुए , पुराने घर को छोड़ना काफी कष्टकारी था पर क्योंकि पुराना घर ऑफिस से काफी दूर पड़ता था इसलिए ऑफिस के नज़दीक ही रहने का निर्णय लिया।
ये नया घर बाजार के बीचो बीच है। ऐसे घर मे रहने का मेरा पहला अनुभव था , अभी तक तो जितने भी घरों में रहना हुआ वो प्राकृतिक सौंदर्य के आस पास ही रहे थे, जहाँ अपनी बॉलकनी से ही खेत, पहाड़, उगता हुआ सूरज , आसमान में बदलते रंगों के साथ उतरती खूबसूरत शामें जीवन में मधुरता घोलते रहते थे।
नए घर को लेकर हम बहुत रोमांचित भी थे और सहमे हुए भी क्योंकि पूरा दृश्य ही बदलने वाला था । नए घर मे शिफ्ट होने में पूरा दिन लग गया। रात को सोये तो दिन भर की थकान से बहुत जल्दी नींद आ गयी और फिर तड़के ही नींद खुली । कुछ लोहे के सरियों की खड़खड़ाहट और ठोकने-पीटने की आवाज़ों से जब नींद टूटी तो देखा पास की सड़क पर सब्जी और फलों की दुकाने लग रही थी।
यह भी सुखद था कि खिड़की से दिखाई देते सामने लगे पेड़ो पर पक्षियों का आना जाना भी लगा हुआ था। रोड़ की रौनक दिन के चढ़ते चढ़ते बड़ती जा रही थी । मेरे मन में ख्याल आया कि ये तो बड़ी मजेदार खिचड़ी है,यहां तो पुराने घर की सादगी और प्राकृतिक सौंदर्य तो है ही साथ में लोगो और वाहनों की चहल पहल से ऊर्जा भी मिलती रहेगी। जो चलते रहने को प्रेरित करती है ।
शाम होते होते थोड़ा ट्रैफिक बढ़ता गया जिस से वायु प्रदूषण भी बढ़ने लगा। मैने घर के अंदर के प्रदूषण को कम करने के लिए प्राकृतिक साधनों का उपयोग करते हुए रबर प्लांट जैसे वायु को स्वच्छ करने में सहायक पौधे लगा लिए।वायु प्रदूषण के साथ साथ ध्वनि प्रदूषण भी दिन के साथ देर तक बना रहा। रात होते होते बाज़ार की गतिविधियों के साथ शोर गुल भी कम होता गया ।
लगने लगा कि कुछ देर का वायु और ध्वनि प्रदूषण ऑफिस के पास और अन्य सुविधाओं को देखते हुए सहन किया जा सकता है।
इस बीच यह जगह भी अपनी सी लगने लगी सुबह चिड़ियों की चहचाहट और रात होते होते गाड़ियों की आवाज़ों के हम अभ्यस्त होते जा रहे हैं।
कुछ राहगीरों को तो हम उनके वाहनों की आवाज़ से ही पहचानने लगे हैं जैसे रात के 10 बजे वो ऑटो वाले दादा, जिनके ऑटो का साइलेंसर काफी समय से खराब चल रहा है, ऐसा लगता है उसका पेट खराब है । एक अलग ही तरह की ध्वनि की तरंगें छोड़ते हुए गुजरता है। शायद वे उसे ठीक कराने के रुपये नही जुटा पा रहे। ये वाकई एक बड़ा मसला है,उन्हें मदद की ज़रूरत है।
इसके साथ एक सज्जन हैं जो लगातार खाली सड़क पर स्कूटर का हॉर्न बजाए जाते हैं। हो सकता है अपने आप को सुरक्षित रखने के लिए ऐसा करते हों पर मुझे लगता है उन्हें भी मदद की ज़रूरत है।ये एक मानसिक बीमारी है।
ऐसा ही रात की 11 बजकर 30 मिनट पर तेज़ रफ़्तार बाइक पर शायद कोई शूरवीर सड़क से गुज़रता है। हॉर्न की आवाज़ नही होती लेकिन उस बाइक की गति की आवाज़ ही इतनी जोरदार है जैसे कि प्लेन के टेकऑफ और लैंडिंग के आवाज़ और कंपन का संगम हो रहा हो। ऐसे लोगो के लिए एक अलग रनवे बनाने की मुहिम शुरू करने की ज़रूरत है ताकि सड़क से ही आकाशीय सफर की उड़ान भर सके उनकी दुपहिया गाड़ी। ऐसे प्रतिभा सम्पन्न खतरों के खिलाड़ियों के कौशल को इस तरह जाया हो जाना बिल्कुल भी देश हित में नही है।
चौराहे पर पता नही कहाँ स्पीकर लगा हुआ है जहाँ से बहुत मधुर गीतों का प्रसारण सुबह दोपहर शाम को होता रहता है, कभी नही भी होता है। समय नियोजन अगर किया जाए तो हम नियमित रूप से लोकप्रिय संगीत का घर बैठे लुफ्त उठा सकते हैं। थोड़ी सी सूझबूझ से इसे व्यवस्थित किया जा सकता है। प्रसारणकर्ता आस पड़ोस के निवासियों की मनचाहे गीतों की फरमाइश भी स्वीकार करे, ताकि जनभागीदारी से इसे और खूबसूरत और आकर्षक बनाया जा सके। ये कुछ ज़रूरी मुद्दे है जिन पर गौर करने की ज़रूरत लगती है
वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण के चरमोत्कर्ष के कारण, सुबह की मेरी विचारों की स्वादिष्ट खिचड़ी रात होते होते जल भुनकर कुछ लोगो की लापरवाही के कारण बेस्वाद हो जाती है।
बाजार में घर है तो थोड़ा बहुत तो सहन किया ही जा सकता है। सड़क पर अगर गाड़ियाँ दौड़ेंगी तो वायु और ध्वनि प्रदूषण होना भी स्वाभाविक है लेकिन गैरजिम्मेदारी पूर्ण और अक्खड़ता के कारण होने वाले प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए तो पहल की ही जानी चाहिए।
एकता कानूनगो बक्षी
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