कादम्बिनी पत्रिका के अप्रैल 2018 अंक में मेरी कविता पढ़ें।
कविता
लौटना
घर से लौटते समय
कुछ ज्यादा ही भारी हो जाता
है बैग
जानते हुए भी
कि एक निर्धारित मापदंड
पहले ही तय है
कि उतना ही भार ले जाया जा
सकता है हवाई यात्रा में
फिर भी कहीं न कहीं
जगह बनाकर रख ही लिया जाता है
ज़रूरत का सामान
कुछ जरूरी और कुछ वो भी
जो लाता है मुस्कुराहट चेहरे पर
बाद में
वजन की निर्धारित सीमा में
नाप तोल करते आखिर जम ही
जाता है बैग
आज भी कोई यंत्र नहीं बना है
लेकिन
मन के भारीपन और यादों के
पुलिंदे को जांचने के लिए
जो आ जाते है साथ साथ
किसी भी पैमाने में बंधे बिना ।
एकता ....
कविता
लौटना
घर से लौटते समय
कुछ ज्यादा ही भारी हो जाता
है बैग
जानते हुए भी
कि एक निर्धारित मापदंड
पहले ही तय है
कि उतना ही भार ले जाया जा
सकता है हवाई यात्रा में
फिर भी कहीं न कहीं
जगह बनाकर रख ही लिया जाता है
ज़रूरत का सामान
कुछ जरूरी और कुछ वो भी
जो लाता है मुस्कुराहट चेहरे पर
बाद में
वजन की निर्धारित सीमा में
नाप तोल करते आखिर जम ही
जाता है बैग
आज भी कोई यंत्र नहीं बना है
लेकिन
मन के भारीपन और यादों के
पुलिंदे को जांचने के लिए
जो आ जाते है साथ साथ
किसी भी पैमाने में बंधे बिना ।
एकता ....


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