सुबह सवेरे में आज मेरी कविता पढ़े।
कविता
दुपहरी
एकता कानूनगो बक्षी
वृक्ष की घनी छाया में रखे मटके
के जल का इंतज़ार करती है
पसीने से परेशान अलसाई दुपहरी
वातानुकूलित कमरे में बैठे हुए भी
बचपन के हंगामों और बरगद की छांव के
किस्से सुनती है
प्याज़ के टुकड़ों को जेबों मे छिपाए
कच्ची कैरी के पने से
गर्म थपेडों से जूझती
तरबूज के कई हिस्सों में कटकर
बट जाना चाहती है
ठंडी हवा आयी है अभी यकायक
शायद घर पर माँ ने छत पर बिस्तर लगाए हैं
सितारों से सजी मुलायम चादर ओढ़े
दादी के गीतों की गूंज में बेसुध
सपनों में खो जाना चाहती है दुपहरी
कविता
दुपहरी
एकता कानूनगो बक्षी
वृक्ष की घनी छाया में रखे मटके
के जल का इंतज़ार करती है
पसीने से परेशान अलसाई दुपहरी
वातानुकूलित कमरे में बैठे हुए भी
बचपन के हंगामों और बरगद की छांव के
किस्से सुनती है
प्याज़ के टुकड़ों को जेबों मे छिपाए
कच्ची कैरी के पने से
गर्म थपेडों से जूझती
तरबूज के कई हिस्सों में कटकर
बट जाना चाहती है
ठंडी हवा आयी है अभी यकायक
शायद घर पर माँ ने छत पर बिस्तर लगाए हैं
सितारों से सजी मुलायम चादर ओढ़े
दादी के गीतों की गूंज में बेसुध
सपनों में खो जाना चाहती है दुपहरी

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