आज जनसत्ता में मेरा लेख पढ़ें।
तैयारी के मोर्चे
एकता कानूनगो बक्षी
होमवर्क शब्द सुनते ही हम सभी को हमारे स्कूल के दिन याद आ जाते हैं. स्कूल में अध्यापक के सहयोग के बाद दिया हुआ वो अभ्यास-कार्य जो हमे अपने बलबूते पर घर पर पूरा करना होता था और वो भी अगले दिन कक्षा में पहुँचने से पहले. हमारा काम हम किस तरह पूरा करते हैं और वह कितना अच्छा होगा वह पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करता था कि पढाई के समय हमारी कक्षा में मानसिक उपस्थिति और शिक्षक के कहे को सुनने-समझने में रूचि तथा एकाग्रता पर ।
शैक्षणिक सत्र के हर दिन के अभ्यास और एकाग्रता से पढाई करने के बाद उस श्रम की परीक्षा की घड़ी जब आती है , तब होनहार विद्यार्थी के भी पसीने उतर आते हैं और वो आत्म अवलोकन के लिए मजबूर हो जाता है। पर ऐसे समय में विद्यार्थी को ज़रा भी नही घबराना चाहिए. अच्छे अंक लाना ज़रूरी है पर उस से भी अधिक ज़रूरी है कि हर विषय पर विशेषज्ञ की तरह पकड़ होना । मात्र दो-तीन घण्टे के प्रदर्शन में हमे खुद को और दूसरों को बिल्कुल भी नही आंकना चाहिए, पूरी तैयारी के साथ परीक्षा कक्ष में विवेक और धैर्य के साथ उतरना ही सफलता की ओर पहला कदम है फिर वो परीक्षा जीवन की ही क्यों न हो।
विचारकों ने तो कहा भी है कि हम सब अपनी काबिलियत और कमियों के बावजूद प्रकृति की ख़ूबसूरत रचना होते हैं. यह भी सच है कि अगर हम जीवन और आचरण को लगातार निखारते और सँवारते रहें तो इस कृति को और बेहतर बनाते चले जाते हैं. ज़रूरत है बस पूरी निष्ठा और ईमानदारी से किये जाने वाले प्रयासों की.
परीक्षाओं के बाद परिणाम की घोषणा के साथ विद्यार्थियों की साल भर की मेहनत रंग बिखेरने लगती है। अपनी लगन और मेहनत के परिणाम स्वरूप प्रत्येक क्षेत्र में नित-नई प्रतिभाओं का उदय और विकास देखने को मिलने लगता है.. कुशल इंजीनियर, चिकित्सक, चार्टेड एकाउंटेन्त और प्रबंधकों के साथ-साथ साहित्य, संस्कृति और कला क्षेत्र में भी कोई नया गायक, लेखक,पेंटर ,फोटोग्राफर, अभिनेता, मॉडल जैसी प्रतिभाएं प्रकट होने लगती हैं. देखते ही देखते उनके हुनर का डंका देश-दुनिया में प्रतिध्वनित होने लगता है. अब सोशल मीडिया भी प्रतिभा प्रोत्साहन का एक बेहतरीन मंच बन गया है. यदि इसका विवेकपूर्ण इस्तेमाल किया जाए तो अपनी योग्यताओं, क्षमताओं का सार्थक प्रस्तुतिकरण यहाँ किया जा सकता है. लोगो की अच्छी बुरी प्रतिक्रिया उपलब्धि का मिष्ठान्न तो चखाती ही है वही निखरने और अपनी गलतियाँ सुधारने का मौका भी देती है ।
मगर यहाँ एक बड़ा सवाल गुणवत्ता का आता है क्या जो हम दूसरों को परोस रहे हैं उस पर हमने पर्याप्त मेहनत की है क्या वो इस लायक है। क्या हमने स्वयं उसका अवलोकन पूरी तरह आलोचनात्मक दृष्टि से किया है। क्या हमारे ‘होम वर्क’ में कुछ कमी तो नहीं रह गयी है. जरूर इस पर प्रस्तुति के पहले विचार कर लिया जाना बेहतर होगा. बहुत सी प्रतिभाओं की प्रस्तुति देख उनकी साधना और लगन की खुशबू स्वतः ही आ जाती है। उनका ‘होम वर्क’ उनके सिर का ताज बन जाता है.
दरअसल सोशल मीडिया पर एकाएक उभरकर आई प्रतिभाएं जरूरी नहीं है कि वे सचमुच में बहुत मेहनत के बाद सामने आईं हों. बिना अभ्यास और मेहनत के शोर्ट कट या ऍप्लिकेशन्स की मदद से बने ये तुरत फुरत स्टार्स अन्यों के साथ ही नही खुद के साथ भी गलत कर रहे है।
मुझे याद आता है कि बचपन से ही ये संस्कार हमारे अंदर डाला जाता है कि बिना मेहनत के कुछ नही मिल सकता । अंग्रेजी में भी कहा गया है , देयर आर नो फ्री लंचेस। इसलिए खुद को धोखा देने से हमे खुद को बचाना चाहिए और हमारे कौशल को पहले खुद जी भर कर जी लेना चाहिए. जब हम खुद को संतुष्ट कर पाते हैं वह खुशी सोशल मीडिया के सैकड़ों लाइक्स और औपचारिक बधाइयों से कही बढ़कर होती है। अपने आपको अपनी क्षमताओं को स्वीकार करना और खुद की मदद करना संतुष्टि का भाव लेकर आता है ।
सोशल मीडिया की हड़बड़ाहट का हिस्सा बनने से बचा जाना चाहिए ।खुद को साबित करने की यही हड़बड़ाहट सोशल मीडिया से निकल हमारे असल जीवन को भी बुरी तरह प्रभावित करती जा रही है, विशेषज्ञों का कहना है कि युवाओं में दुःख और अवसाद के बढ़ने का एक कारण यह भी है. हमारा लक्ष्य केवल दूसरो को अपनी श्रेष्ठता दिखाना ही नही होना चाहिए. एक सीमा तक तो ठीक है कि सबके साथ अपनी बात साझा करने में भी खुशी ही मिलती है पर इस बीच हमे अपने दीर्घजीवी और स्थायी आनंद को नही भूलना चाहिए।
खुद के वास्तविक विकास पर हमे पूरा समय देना चाहिए । जीवन मे अनुशासन लाकर हम हर लक्ष्य को पा सकते है और वो शोहरत भी क्या जो बिना मेहनत के हमे मिल जाये। इस मामले में एक ही सूत्र सामने है आभासी दुनिया का जीवन हो या सच्चा संसार.. दोनों जगह सफलता के लिए पर्याप्त और गंभीरता से ‘होम वर्क’ करना बेहत जरूरी होगा.
एकता कानूनगो बक्षी
तैयारी के मोर्चे
होमवर्क शब्द सुनते ही हम सभी को हमारे स्कूल के दिन याद आ जाते हैं. स्कूल में अध्यापक के सहयोग के बाद दिया हुआ वो अभ्यास-कार्य जो हमे अपने बलबूते पर घर पर पूरा करना होता था और वो भी अगले दिन कक्षा में पहुँचने से पहले. हमारा काम हम किस तरह पूरा करते हैं और वह कितना अच्छा होगा वह पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करता था कि पढाई के समय हमारी कक्षा में मानसिक उपस्थिति और शिक्षक के कहे को सुनने-समझने में रूचि तथा एकाग्रता पर ।
शैक्षणिक सत्र के हर दिन के अभ्यास और एकाग्रता से पढाई करने के बाद उस श्रम की परीक्षा की घड़ी जब आती है , तब होनहार विद्यार्थी के भी पसीने उतर आते हैं और वो आत्म अवलोकन के लिए मजबूर हो जाता है। पर ऐसे समय में विद्यार्थी को ज़रा भी नही घबराना चाहिए. अच्छे अंक लाना ज़रूरी है पर उस से भी अधिक ज़रूरी है कि हर विषय पर विशेषज्ञ की तरह पकड़ होना । मात्र दो-तीन घण्टे के प्रदर्शन में हमे खुद को और दूसरों को बिल्कुल भी नही आंकना चाहिए, पूरी तैयारी के साथ परीक्षा कक्ष में विवेक और धैर्य के साथ उतरना ही सफलता की ओर पहला कदम है फिर वो परीक्षा जीवन की ही क्यों न हो।
विचारकों ने तो कहा भी है कि हम सब अपनी काबिलियत और कमियों के बावजूद प्रकृति की ख़ूबसूरत रचना होते हैं. यह भी सच है कि अगर हम जीवन और आचरण को लगातार निखारते और सँवारते रहें तो इस कृति को और बेहतर बनाते चले जाते हैं. ज़रूरत है बस पूरी निष्ठा और ईमानदारी से किये जाने वाले प्रयासों की.
परीक्षाओं के बाद परिणाम की घोषणा के साथ विद्यार्थियों की साल भर की मेहनत रंग बिखेरने लगती है। अपनी लगन और मेहनत के परिणाम स्वरूप प्रत्येक क्षेत्र में नित-नई प्रतिभाओं का उदय और विकास देखने को मिलने लगता है.. कुशल इंजीनियर, चिकित्सक, चार्टेड एकाउंटेन्त और प्रबंधकों के साथ-साथ साहित्य, संस्कृति और कला क्षेत्र में भी कोई नया गायक, लेखक,पेंटर ,फोटोग्राफर, अभिनेता, मॉडल जैसी प्रतिभाएं प्रकट होने लगती हैं. देखते ही देखते उनके हुनर का डंका देश-दुनिया में प्रतिध्वनित होने लगता है. अब सोशल मीडिया भी प्रतिभा प्रोत्साहन का एक बेहतरीन मंच बन गया है. यदि इसका विवेकपूर्ण इस्तेमाल किया जाए तो अपनी योग्यताओं, क्षमताओं का सार्थक प्रस्तुतिकरण यहाँ किया जा सकता है. लोगो की अच्छी बुरी प्रतिक्रिया उपलब्धि का मिष्ठान्न तो चखाती ही है वही निखरने और अपनी गलतियाँ सुधारने का मौका भी देती है ।
मगर यहाँ एक बड़ा सवाल गुणवत्ता का आता है क्या जो हम दूसरों को परोस रहे हैं उस पर हमने पर्याप्त मेहनत की है क्या वो इस लायक है। क्या हमने स्वयं उसका अवलोकन पूरी तरह आलोचनात्मक दृष्टि से किया है। क्या हमारे ‘होम वर्क’ में कुछ कमी तो नहीं रह गयी है. जरूर इस पर प्रस्तुति के पहले विचार कर लिया जाना बेहतर होगा. बहुत सी प्रतिभाओं की प्रस्तुति देख उनकी साधना और लगन की खुशबू स्वतः ही आ जाती है। उनका ‘होम वर्क’ उनके सिर का ताज बन जाता है.
दरअसल सोशल मीडिया पर एकाएक उभरकर आई प्रतिभाएं जरूरी नहीं है कि वे सचमुच में बहुत मेहनत के बाद सामने आईं हों. बिना अभ्यास और मेहनत के शोर्ट कट या ऍप्लिकेशन्स की मदद से बने ये तुरत फुरत स्टार्स अन्यों के साथ ही नही खुद के साथ भी गलत कर रहे है।
मुझे याद आता है कि बचपन से ही ये संस्कार हमारे अंदर डाला जाता है कि बिना मेहनत के कुछ नही मिल सकता । अंग्रेजी में भी कहा गया है , देयर आर नो फ्री लंचेस। इसलिए खुद को धोखा देने से हमे खुद को बचाना चाहिए और हमारे कौशल को पहले खुद जी भर कर जी लेना चाहिए. जब हम खुद को संतुष्ट कर पाते हैं वह खुशी सोशल मीडिया के सैकड़ों लाइक्स और औपचारिक बधाइयों से कही बढ़कर होती है। अपने आपको अपनी क्षमताओं को स्वीकार करना और खुद की मदद करना संतुष्टि का भाव लेकर आता है ।
सोशल मीडिया की हड़बड़ाहट का हिस्सा बनने से बचा जाना चाहिए ।खुद को साबित करने की यही हड़बड़ाहट सोशल मीडिया से निकल हमारे असल जीवन को भी बुरी तरह प्रभावित करती जा रही है, विशेषज्ञों का कहना है कि युवाओं में दुःख और अवसाद के बढ़ने का एक कारण यह भी है. हमारा लक्ष्य केवल दूसरो को अपनी श्रेष्ठता दिखाना ही नही होना चाहिए. एक सीमा तक तो ठीक है कि सबके साथ अपनी बात साझा करने में भी खुशी ही मिलती है पर इस बीच हमे अपने दीर्घजीवी और स्थायी आनंद को नही भूलना चाहिए।
खुद के वास्तविक विकास पर हमे पूरा समय देना चाहिए । जीवन मे अनुशासन लाकर हम हर लक्ष्य को पा सकते है और वो शोहरत भी क्या जो बिना मेहनत के हमे मिल जाये। इस मामले में एक ही सूत्र सामने है आभासी दुनिया का जीवन हो या सच्चा संसार.. दोनों जगह सफलता के लिए पर्याप्त और गंभीरता से ‘होम वर्क’ करना बेहत जरूरी होगा.
एकता कानूनगो बक्षी

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