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Thursday, July 26, 2018

13 मई 2018 / सुबह सवेरे /एक ही सिक्का हैं वे

सुबह सवेरे में मेरी कविता पढ़े 💐

कविता
एक ही सिक्का हैं वे
एकता कानूनगो बक्षी

माँ जैसे वो
उन जैसी माँ

उम्र के इस पड़ाव पर
एक जैसे लगते हैं दोनों
हाव-भाव,खान-पान,
व्यवहार हो या विचार
जैसे सब सवार जीवन की गाड़ी में
एक ही डिब्बे में
समान पटरी पर दौड़ते हुए

ममत्व का सागर असीम है माँ में
पर छुपाये नही छुपता
पिता का स्नेह प्रपात

बदलते देखा है किरदारों को
बदलते दृश्यों में
कभी वो माँ बन जाते है
कभी माँ बन जाती है पिता

दुनिया की सारी सुंदरता,
विचार और विज्ञान
पहुंच रहा मुझ तक
दोनों की शुभकामनाओं पर सवार होकर

यह शोध का विषय है कि क्यों
कभी पिता में मुझे माँ नज़र आती है
कभी माँ में  दिखाई देते हैं पिता ।




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