My Profile Profile Hello Friends My name is Ekta Kanungo . I am from Indore, presently in Pune . I

Monday, March 25, 2019

गुनगुनाता हौसला / रविवारीय नईदुनिया के तरंग में ( 10 मार्च 2019)

आज रविवारीय नईदुनिया के तरंग में मेरी लघुकथा पढ़ें।

लघुकथा
गुनगुनाता हौसला
एकता कानूनगो बक्षी

सुधा दोपहर की नींद से अचानक से उठ बैठी। वॉश एरिया में आज कोई गुनगुना रहा था। यह समझने में उसे देर नहीं लगी कि शायद ये तो शीतल ही है,जो काम करते करते गुनगुनाती रहती है।

शीतल उनके घर में बर्तन साफ़ करने का काम करती थी।  स्वभाव से वह शांत,मृदुभाषी तो थी ही, अपने काम और व्यवहार से कुछ ही समय में उसने सबका मन भी मोह  लिया था।

देहात से आये अशिक्षित माँ पिता की संतान होने के बावजूद वह  शिक्षा के महत्व को समझती थी। इसलिए उसने आठवीं तक शिक्षा पूरी कर ली थी और अब काम के साथ साथ आगे की पढ़ाई जारी रखने की तैयारी भी कर रही थी।

अभी दो साल पहले उसकी शादी हो गयी तो अपना सारा काम अपनी माँ को सौप कर वह  ससुराल चली गयी। कुछ समय पहले अपने नवजात शिशु से मिलवाने भी वह सुधा के घर आई थी।

लंबे अंतराल के बाद माँ की बजाए आज शीतल वापस काम पर आई थी तो सुधा के कदम सहसा ही वाश एरिया की तरफ बढ़ गए, जहां शीतल अपने काम को हमेशा की तरह तल्लीनता से गुनगुनाते हुए अंजाम दे रही थी।

सुधा ने मुस्कुराते हुए शीतल से पूछा-'अरे शीतल कैसी हो? बहुत दिनों बाद आना हुआ इस तरफ।' शीतल ने चेहरे पर मुस्कुराहट बिखेरते हुए जवाब दिया-'मैं अच्छी हूँ आंटी, अब रोज़ मैं ही आऊँगी।'  'क्यों ससुराल नही जाना है क्या?'
'नही आंटी।'
'क्यो क्या हुआ?'  सुधा ने अपनी चिंता जाहिर की। 'अब आंटी क्या बताऊँ आपको! बहुत सारी परिस्थितियां है इसके पीछे, पर बस इतना है कि उनको मेरे जैसी लड़की नही चाहिए।'
'ओह ! फिर तुम्हारे बच्चे का क्या होगा?'  सुधा ने पूछा।

'मैं खुद ही अपने बच्चे की परवरिश करुँगी आंटी। मैंने आगे की परीक्षा के फार्म भी भर दिए हैं और सिलाई भी सीख रही हूँ और फिर ये काम तो है ही।'

सुधा और शीतल एक दूसरे को देख कर कुछ देर मुस्कुराते रहे।  फिर शीतल पुनः अपने काम मे लग गयी और गुनगुनाने लगी।

अबकी बार शीतल की स्वर लहरियां सुधा के अन्तःकरण में भी कम्पन पैदा करती रही देर तक।

No comments:

Post a Comment