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Monday, March 25, 2019

सदभाव के रंग ( जनसत्ता में 12 मार्च 2019)

आज जनसत्ता में मेरा लेख पढ़ें।

माह के बहाने  जीवन का ‘मार्च’

एकता कानूनगो बक्षी

साल के हर महीने की अपनी एक अलग पहचान और विशेषता होती  है। मार्च को हम व्यस्त महीना कह सकते हैं. आदमी तो आदमी प्रकृति भी इन दिनों अपने को संवारनें, व्यवस्थित करने में सक्रिय हो जाती है। पतझड़ के बाद पेड़ों के नव पल्लवन और खिलने,फलने का ख़ूबसूरत समय मार्च के आगमन के साथ शुरू हो जाता है।जंगलों में भी पलाश अपने रंग बिखेरने लगता है। मौसम के भी बदले हुए मिज़ाज दिखाई देते हैं, कभी दिन भर की  तीखी धूप और सुबह शाम की सुकून भरी पुरवाई।



यही वक्त है जब विद्यार्थियों की साल भर की मेहनत दांव पर लगी होती है. कुछ विद्यार्थी साल भर के सबक को दोहराने में व्यस्त रहते हैं तो कुछ के ह्रदय परीक्षा केन्द्रों पर तैयारी के बावजूद  धड़कते रहते हैं। इसी तरह की सरगर्मी का माहौल इन दिनों सरकारी और निजी कार्यालयों में भी दिखाई देने लगता है।

सभी जानते हैं मार्च वित्तीय वर्ष की समाप्ति का माह भी होता है तो  सारे एकाउंट्स में ‘डेबिट-क्रेडिट’ करते हुए क्लोज़ भी करना रहता है। जब हम एकाउंट को क्लोज करते है तो उस प्रक्रिया से पूरे साल का लाभ-हानि भी हमारे सामने आ जाता है। एक तरह से कहा जा सकता है कि मार्च का महीना साल भर में ‘क्या खोया, क्या पाया’ की तस्वीर हमारे जीवन के कैनवास पर चित्रित करने का काम भी कर जाता है।



देखा जाए तो हमारे जीवन में भी कई एकाउंट्स है जिनका समय समय पर अवलोकन करते रहना चाहिए। क्योंकि इनका भी सही रख रखाव और संतुलन पूरे जीवन की बैलेंस शीट को प्रभावित करता है। जैसे कि हमारी सेहत , परिवार , हमारी देनदारियां, हमारे प्रेम और स्नेह का आदान-प्रदान जैसे खातों का संतुलन भी बनाये रखना बहुत आवश्यक है और साथ ही काफी चुनोतीपूर्ण भी है।



दुनिया ही नहीं हमारे जीवन मे भी अर्थशास्त्र का बहुत महत्व है। हमारी प्रत्येक जरूरत का निदान अंततः पैसों अर्थात धन की व्यवस्थित कार्ययोजना से ही निकलकर आता है। धन या संपत्ति को लेकर अनेक पारिवारिक मतभेद ,विवाद भी अक्सर देखने को मिलते हैं। ऐसे में लगता है कि कही ना कहीं  आर्थिक नियोजन के सन्दर्भ में हमारे दृष्टिकोण को सबको पुनर्विचार करते रहना चाहिए।

सामान्यतः हम लोग अपनी संपत्ति का निर्माण या बचत हमारी मूलभूत ज़रूरते पूरी करने के लिए करते हैं। मोटे रूप से  भोजन, आवास, पहन ने को वस्त्र, शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षित  भविष्य ही हमारी आगे की जरूरतें होती हैं। उसके उपरांत शेष धन का निवेश जनकल्याण के कार्यो में या फिर खुद के विकास के लिए करना काफी हद तक ठीक होता है। इसके अतिरिक्त धन का संचय तो  लालच ही कहलाएगा। अब देखिए !  आपको भूख है दो  रोटियों की पर आप चार  और अतिरिक्त खायेंगे  तो आप को  अजीर्ण होना स्वाभाविक है। अगर आप वो चार रोटियाँ किसी ज़रूरतमंद को दे देते हैं तो आपको मन में संतोष होगा और सुख शांति तो मिलेगी ही लेकिन  आपके आस पास की दुनिया को और ख़ूबसूरत बनाने का आप प्रयास भी करेंगें।

ज़रूरतों के हिसाब से सादगीभरा जीवन जीने से अपूर्व सुकून जीवन मे बना रहता है और हम व्यथित करने वाली अनेक परिस्थितियों से भी बच पाते है। पर इसका मतलब ये बिल्कुल भी नही की हम महत्वाकांक्षी न रहे। खूब मेहनत करें, जीवन में सीढियां चढ़ते जाएँ लेकिन उसका अंतिम लक्ष्य केवल धन या आधिपत्य प्राप्त करना न रहे बल्कि उद्देश्य उस से कहीं अधिक बेहतर, सर्व कल्याणकारी हो जिससे आपका जीवन केवल ‘मैं’ तक नहीं बल्कि ‘हम’ के व्यापक क्षितिज को स्पर्श कर सके।

कहने का तात्पर्य यह है कि घर के हर सदस्य को बुनियादी आर्थिक समझ होना आवश्यक है। सभी को शिक्षित करना एक जटिल प्रक्रिया है. यह बेहद ज़रूरी है कि समझाइश के केंद्र में रुपये पैसे की  बात न होते हुए ज़रूरतों और बेहतर विकल्पों की बात की जाए।

एक हिदायत जो घर के बड़े बुजुर्ग  अक्सर छोटों से कहते हुए सुने जा सकते है कि   ‘ट्यूब लाइट बंद करो बिल बहुत आ जाएगा’. यह एक सीमित कथन है.  जब कि होना यह चाहिए कि ऊर्जा के नुकसान से व्यापक रूप से क्या असर होता है उस बारे में विस्तार से बात की जाए। इसके साथ ही चीज़ों को सहेजना, उसकी कद्र करना, रखरखाव करना, पुनः उपयोग करना.   इस तरह की शिक्षा जो शायद स्कूलों कालेजों में शायद न मिले पर सीधे तौर पर हमारे घरों की आर्थिक व्यवस्था और हमारे देश की अर्थव्यस्था पर गहरा असर छोड़ती हैं। बाज़ारवाद और विज्ञापनों से अति प्रभावित न होकर विवेकपूर्ण क्रय विक्रय करना भी धन का सही प्रबंधन सुनिश्चित करता है ।


व्यापक  दृष्टिकोण का होना हर क्षेत्र में सफल होने के लिए हम सभी के लिए बहुत जरूरी है. सीमित सोच और तात्कालिक लाभ हमे उस समय तो सशक्त और खुशहाल बना सकता है किन्तु भविष्य की स्थायी खुशी और सम्पन्नता की गारंटी नहीं होता। धन, संपत्ति को केवल  ज़रूरत पूर्ति की तरह ही देखा जाए तो बेहतर होगा। जीवन का असली मजा तो सोच-समझकर सबको साथ लेकर  ‘मार्च’ करने में ही आता है. जब बात मार्च  महीने की हो तो यह महीना तो खासतौर पर हर्ष और उल्लास के पर्व होली को भी अपने साथ लेकर आता है। उमंग, उल्लास,प्रेम, भाईचारे और सद्भाव के इन्द्रधनुषी रंग बिखरने की शुरुआत इसी माह की आज की तारीख से क्यों न शुरू कर दी जाए इस बार भी। यही हमारी परम्परा भी रही है। 

http://epaper.jansatta.com/m5/2065183/Jansatta/12-March-2019#page/6/1

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