नईदुनिया के 'नायिका' परिशिष्ट में मेरी रचना पढ़ें।
संस्मरण/लघुकथा
बहुमूल्य ग्यारह रुपये
एकता कानूनगो बक्षी
दादी सुबह से ही अपने बटुए और बैग को टटोले जा रही थी।ऐसा रोज़ नही होता था कुछ खास दिनों को ही ऐसा होता था।
बहू वसुधा ने उनकी बैचेनी के बारे में पूछा तो बटुए को टटोलते हुए, दादी ने कहा- 'अरे लाड़ी, खुल्ले रुपये नहीं मिल रहे हैं।'
दादी की बहू उनकी बहुत लाड़ की थी इसलिए उसे वो हमेशा लाड़ी ही बुलाते।इनका रिश्ता माँ बेटी का ही था।
दादी ने वसुधा को 50 रुपये का नोट देते हुए कहा 'मुझे 50 रुपये के छुट्टे दे दो। मुझे 10 रुपये चाहिए एक का सिक्का तो है मेरे पास।'
वसुधा ने 50 रुपये का नोट उन्हें लौटाते हुए कहा 'अरे ये 50 रुपये तो आप ही रखो,यदि बाजार से कुछ लाना है तो मुझे बताओ आप।'
'नही कुछ नही लाना , अंकिता का कल परीक्षा परिणाम आ रहा है ना! अंकिता को देना हैं।' दादी ने कहा।
वसुधा को दादी की हमेशा की आदत याद आ गयी। उनकी आदत थी जब भी घर में किसी की सालगिरह होती, त्योहार होता, घर पर कोई उनसे मिलने आते तो वो पहले ही 11 रुपये का इंतज़ाम कर के रख लेतीं और अच्छे कपड़े पहन तैयार हो जातीं।
जैसे ही कोई उनके आशीर्वाद के लिए चरणस्पर्श करता तो वो उनका हाथ सिर पर स्नेह और अधिकार से रख देतीं और खूब सारा आशीर्वाद देते हुए 11 रुपये थमा देतीं।
वह ग्यारह रुपये शायद जादुई रुपये होते थे जिनमें वे स्नेह और आशीष का मंत्र फूंक देतीं थीं। उनके अनुसार दस के साथ एक जोड़ना अनिवार्य होता था ।शून्य जीवन और विचारो में कभी नही आना चाहिए।इसलिए हमेशा ग्यारह का ही उपहार देतीं।
दादी के उपहार में अगर कुछ शून्य होता था तो वह था स्वार्थ और लालच। उन ग्यारह रुपये से कभी कुछ खास खरीदा भी नहीं जा सकता था। यही वह मंत्र था जिसके कारण उनकी शुभकामनाएं और भावनाएँ ही सर्वोपरि हो जाया करतीं थीं।
मंहगाई के बढ़ने से वस्तुओं के दाम तो बढ़े ही पर उसके साथ ही स्नेह और घनिष्टता भी वस्तुओं की कीमत पर निर्भर होती गयी। बंद लिफाफो में रखे नोटो, महंगे उपहारों और बढ़ चढ़कर दी जाने वाली कृत्रिम शुभकामनाओं के बीच दादी के वे ग्यारह रुपए, स्नेह और आशीष में सिर पर रखे उनके हाथ के आगे सब कुछ बहुत कम है।
डॉलर के मुकाबले रुपया कितना भी चढ़ता उतरता रहा। ग्यारह रुपयों का उनका आशीर्वाद सदैव एक सा बना रहा।रिश्तों की गर्माहट और सच्चे आशीर्वाद के दादी के वे ग्यारह रुपये बेशकीमती उपहारों और औपचारिक बधाइयों से कई गुना बहुमूल्य हैं।
संस्मरण/लघुकथा
बहुमूल्य ग्यारह रुपये
एकता कानूनगो बक्षी
दादी सुबह से ही अपने बटुए और बैग को टटोले जा रही थी।ऐसा रोज़ नही होता था कुछ खास दिनों को ही ऐसा होता था।
बहू वसुधा ने उनकी बैचेनी के बारे में पूछा तो बटुए को टटोलते हुए, दादी ने कहा- 'अरे लाड़ी, खुल्ले रुपये नहीं मिल रहे हैं।'
दादी की बहू उनकी बहुत लाड़ की थी इसलिए उसे वो हमेशा लाड़ी ही बुलाते।इनका रिश्ता माँ बेटी का ही था।
दादी ने वसुधा को 50 रुपये का नोट देते हुए कहा 'मुझे 50 रुपये के छुट्टे दे दो। मुझे 10 रुपये चाहिए एक का सिक्का तो है मेरे पास।'
वसुधा ने 50 रुपये का नोट उन्हें लौटाते हुए कहा 'अरे ये 50 रुपये तो आप ही रखो,यदि बाजार से कुछ लाना है तो मुझे बताओ आप।'
'नही कुछ नही लाना , अंकिता का कल परीक्षा परिणाम आ रहा है ना! अंकिता को देना हैं।' दादी ने कहा।
वसुधा को दादी की हमेशा की आदत याद आ गयी। उनकी आदत थी जब भी घर में किसी की सालगिरह होती, त्योहार होता, घर पर कोई उनसे मिलने आते तो वो पहले ही 11 रुपये का इंतज़ाम कर के रख लेतीं और अच्छे कपड़े पहन तैयार हो जातीं।
जैसे ही कोई उनके आशीर्वाद के लिए चरणस्पर्श करता तो वो उनका हाथ सिर पर स्नेह और अधिकार से रख देतीं और खूब सारा आशीर्वाद देते हुए 11 रुपये थमा देतीं।
वह ग्यारह रुपये शायद जादुई रुपये होते थे जिनमें वे स्नेह और आशीष का मंत्र फूंक देतीं थीं। उनके अनुसार दस के साथ एक जोड़ना अनिवार्य होता था ।शून्य जीवन और विचारो में कभी नही आना चाहिए।इसलिए हमेशा ग्यारह का ही उपहार देतीं।
दादी के उपहार में अगर कुछ शून्य होता था तो वह था स्वार्थ और लालच। उन ग्यारह रुपये से कभी कुछ खास खरीदा भी नहीं जा सकता था। यही वह मंत्र था जिसके कारण उनकी शुभकामनाएं और भावनाएँ ही सर्वोपरि हो जाया करतीं थीं।
मंहगाई के बढ़ने से वस्तुओं के दाम तो बढ़े ही पर उसके साथ ही स्नेह और घनिष्टता भी वस्तुओं की कीमत पर निर्भर होती गयी। बंद लिफाफो में रखे नोटो, महंगे उपहारों और बढ़ चढ़कर दी जाने वाली कृत्रिम शुभकामनाओं के बीच दादी के वे ग्यारह रुपए, स्नेह और आशीष में सिर पर रखे उनके हाथ के आगे सब कुछ बहुत कम है।
डॉलर के मुकाबले रुपया कितना भी चढ़ता उतरता रहा। ग्यारह रुपयों का उनका आशीर्वाद सदैव एक सा बना रहा।रिश्तों की गर्माहट और सच्चे आशीर्वाद के दादी के वे ग्यारह रुपये बेशकीमती उपहारों और औपचारिक बधाइयों से कई गुना बहुमूल्य हैं।
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