आज नईदुनिया नायिका में मेरी लघुकथा पढ़े।
लघुकथा
टपरी
एकता कानूनगो बक्षी
दीनू काका की टपरी पर लगी लकड़ी की बेंच पर
रोज की तरह बुजुर्गों की बैठक जमी हुई थी। अधिकांश सेवानिवृत्त अधिकारी और गण्यमान वरिष्ठ जन शाम की सैर के बाद यहीं इकट्ठा हो जाते थे।
चाय के दौर लगातार चले जा रहे थे। शुगर फ्री बिस्कुट करीने से छोटी सी तश्तरी में सजे हुए थे। काका को मालूम था कि उनके इन खास ग्राहकों में से ज्यादातर को मधुमेह है या एहतेहातन शक्कर से दूर रहते हैं। शुगर फ्री गोलियां भी वे रखते थे अपनी टपरी में।
अब यही चाय की दुकान संध्याकालीन चर्चा गोष्ठी में रूपांतरित हो चुकी थी। दीनू काका कई वर्षो से यहाँ टपरी लगा कर साहबों को चाय पिला रहे थे।देखते देखते टाई कोट पहनकर आने वाले साहब अब लकड़ी की बेंत थामे कुर्ता पाजामा या बड़मोला में उनकी दूकान में आने लगे थे।
काका की टपरी कई विषयों पर हुई बातचीत की गवाह रही है। आर्थिक ,राजनैतिक ,पर्यटन , खेल जगत की बातों के बाद अब आध्यात्मिक और मोटिवेशनल विषयों पर गहन चिन्तन की गूंज भी टपरी के पर्यावरण में महसूस की जाने लगी है।
एक तरह से दीनू काका को दीनदुनिया का सारा ज्ञान ऐसी ही चर्चाओं से टपरी में ही मिलता रहा था। आज की चर्चा तीर्थयात्रा विषय पर आ रुकी थी। बुजुर्गों का मानना था कि जीवन की पूर्णता और मोक्ष प्राप्ति तीर्थाटन और देवदर्शन से ही संभव है। हालांकि कुछ बुजुर्ग इस पर सहमत नहीं भी थे।
जिन्होंने बहुत सारे देव स्थानों के दर्शन कर लिए थे वे गौरव और संतुष्टि का भाव लिए हुए मुस्कुरा रहे थे, वहीं कुछ अपनी स्वास्थ्य और शारीरिक कठिनाइयों और पारिवारिक बंधनों की वजह से तीर्थाटन नहीं कर पाए थे,उनमें कुछ निराशा का भाव दिखाई दे रहा था।
एकाएक सब का ध्यान चाय बनाते चाचा पर केन्द्रित हो गया। काका भी उम्र के लगभग अस्सी वें पायदान पर ही थे ।
एक सज्जन ने उनसे कहा 'अरे चाचा! जीवन भर चाय ही पिलाते रहोगे कि कुछ तीरथ वीरथ भी करोगे? यहाँ नहीं तो वहाँ तो स्वर्ग मिले।हमेशा केतली ही घुमाते रहोगे क्या.. !
दीनू काका ने बड़ी विनम्रता से कहा 'हुजुर समय ही कहाँ है..काम नही किया तो भूखे मर जाएंगे , ऊपर वाले ने ताकत दी है तो दिनभर आप सबकी खिदमत कर पा रहा हूँ..उस से और क्या मांगू.. '
आप सबको खुशी खुशी चाय की चुस्कियां लेते बातचीत करते देखता हूँ तो मजा आ जाता है.. खुशियाँ हो तो यहीं स्वर्ग है साहब।'
दीनू काका की बात सुनकर फीकी चाय के आखिरी घूँट भीतर उतार सभी अपने अपने घरों की ओर लौट चले।
काका ने भी चाय के पतीले को उतार रात के लिए बिरयानी की हांडी चड़ा दी। कॉलेज के युवाओं का लघु सेमिनार रोज रात जो यहां होता रहता था।
लघुकथा
टपरी
एकता कानूनगो बक्षी
दीनू काका की टपरी पर लगी लकड़ी की बेंच पर
रोज की तरह बुजुर्गों की बैठक जमी हुई थी। अधिकांश सेवानिवृत्त अधिकारी और गण्यमान वरिष्ठ जन शाम की सैर के बाद यहीं इकट्ठा हो जाते थे।
चाय के दौर लगातार चले जा रहे थे। शुगर फ्री बिस्कुट करीने से छोटी सी तश्तरी में सजे हुए थे। काका को मालूम था कि उनके इन खास ग्राहकों में से ज्यादातर को मधुमेह है या एहतेहातन शक्कर से दूर रहते हैं। शुगर फ्री गोलियां भी वे रखते थे अपनी टपरी में।
अब यही चाय की दुकान संध्याकालीन चर्चा गोष्ठी में रूपांतरित हो चुकी थी। दीनू काका कई वर्षो से यहाँ टपरी लगा कर साहबों को चाय पिला रहे थे।देखते देखते टाई कोट पहनकर आने वाले साहब अब लकड़ी की बेंत थामे कुर्ता पाजामा या बड़मोला में उनकी दूकान में आने लगे थे।
काका की टपरी कई विषयों पर हुई बातचीत की गवाह रही है। आर्थिक ,राजनैतिक ,पर्यटन , खेल जगत की बातों के बाद अब आध्यात्मिक और मोटिवेशनल विषयों पर गहन चिन्तन की गूंज भी टपरी के पर्यावरण में महसूस की जाने लगी है।
एक तरह से दीनू काका को दीनदुनिया का सारा ज्ञान ऐसी ही चर्चाओं से टपरी में ही मिलता रहा था। आज की चर्चा तीर्थयात्रा विषय पर आ रुकी थी। बुजुर्गों का मानना था कि जीवन की पूर्णता और मोक्ष प्राप्ति तीर्थाटन और देवदर्शन से ही संभव है। हालांकि कुछ बुजुर्ग इस पर सहमत नहीं भी थे।
जिन्होंने बहुत सारे देव स्थानों के दर्शन कर लिए थे वे गौरव और संतुष्टि का भाव लिए हुए मुस्कुरा रहे थे, वहीं कुछ अपनी स्वास्थ्य और शारीरिक कठिनाइयों और पारिवारिक बंधनों की वजह से तीर्थाटन नहीं कर पाए थे,उनमें कुछ निराशा का भाव दिखाई दे रहा था।
एकाएक सब का ध्यान चाय बनाते चाचा पर केन्द्रित हो गया। काका भी उम्र के लगभग अस्सी वें पायदान पर ही थे ।
एक सज्जन ने उनसे कहा 'अरे चाचा! जीवन भर चाय ही पिलाते रहोगे कि कुछ तीरथ वीरथ भी करोगे? यहाँ नहीं तो वहाँ तो स्वर्ग मिले।हमेशा केतली ही घुमाते रहोगे क्या.. !
दीनू काका ने बड़ी विनम्रता से कहा 'हुजुर समय ही कहाँ है..काम नही किया तो भूखे मर जाएंगे , ऊपर वाले ने ताकत दी है तो दिनभर आप सबकी खिदमत कर पा रहा हूँ..उस से और क्या मांगू.. '
आप सबको खुशी खुशी चाय की चुस्कियां लेते बातचीत करते देखता हूँ तो मजा आ जाता है.. खुशियाँ हो तो यहीं स्वर्ग है साहब।'
दीनू काका की बात सुनकर फीकी चाय के आखिरी घूँट भीतर उतार सभी अपने अपने घरों की ओर लौट चले।
काका ने भी चाय के पतीले को उतार रात के लिए बिरयानी की हांडी चड़ा दी। कॉलेज के युवाओं का लघु सेमिनार रोज रात जो यहां होता रहता था।

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