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Monday, March 25, 2019

कुदरत का कर्ज (जनसत्ता 10 जुलाई 2018)

विश्व पर्यावरण दिवस पर 
लेख 
हम ऋणी है 
एकता कानूनगो बक्षी 

छुट्टियां को सही तरह से  बिताने के लिए हम सब अक्सर प्रकृति की ओर रुख करते है जंगलो पहाड़ो झरनों के बीच सुकून के कुछ पल बिताते है दुर्लभ और उस क्षेत्र के  पशु पक्षियों के चित्र लेते है और उन्हें हमेशा के लिए संजो लेने की कोशिश करते है हमारी वैकेशन की एल्बम में ।बस यही तो है पर्यावरण , हमारे आस पास मौजूद प्रकृति ,जीव जंतु  सुखद स्वस्थ वातावरण,  जो हमारे स्वस्थ जीवन के लिए आवश्यक है . ये हम सभी के लिए सब से बड़ा उपहार है अगर हमारा पर्यावरण स्वस्थ है तो हम स्वस्थ है और खुशहाल भी ।

इन दिनों आदर्श पर्यावरण और वास्तविक पर्यावरण के बीच की खाई कुछ गहराती जा रही है , हमे इतना भी उसे गहरा नही कर देना चाहिए कि फिर हम उसे कभी पहले जैसा न कर सके और इस खाई में  गिर हम खुद नष्ट हो जाये ।

इस बारे में कई बार कहा और लिखा गया है कि हमारी छोटी छोटी आदतों में बदलाव से हम अपने पर्यावरण का पूरा दृश्य ही बदल सकते है ।पर असल मे सब से पहले अगर किसी बदलाव की ज़रूरत है तो वो हमारी मानसिकता की है ।

 इंसानी फितरत है कि जो चीज़ हमे बिना मेहनत और खर्चे किये हुए मिलती है उसका हम दुरुपयोग करते है। प्रकृति ऐसी ही एक देन है जो बचपन से हमे स्वतः ही मिल गयी। हम इसका दोहन जन्म होते ही करते है जब हम हमारी पहली सांस लेते है कैसे प्रकृति में उपस्थित प्राण वायु खुद ब खुद बिना मांगे हमारे अंदर प्रवेश कर हमारा  स्वागत करती है , और उसके साथ ही हमारी हर छोटी से छोटी ज़रूरतो के लिए हम प्रकति पर निर्भर होते चले जाते है  जीव जंतु पेड़ पौधे जड़ी बूटियां सब लग जाती है हमारा पोषण करने । शायद प्रकृति में स्वाभाविक रूप से मनुष्य के प्रति प्रेम और उसका पालन पोषण करने का भाव विधमान है ।

   मानव प्रजाति  की सबसे बड़ी ताकत उसका दिमाग है जो असम्भव को संभव बनाने में सक्षम है ।अनूठे आविष्कार करने में हम दक्ष है , पर हमसे भी गलतिया होती है जब हम हमारी सीमा भूल जाते है क्षणिक सुख के लिए हम ये भूल जाते है कि हम असल मे उन स्वाभाविक तत्वों में बदलाव ला रहे है जिसका कोई एवज नही है यहा तक कि उनके बिना हमारा जीवन ही नष्ट हो सकता है ये सब सब हमारी बुद्धिमत्ता नही मूर्खता ही दर्शाती है ।आज फेस मास्क , वाटर प्यूरीफायर , ,एयर प्यूरीफायर ये सब ज़रूरत की वस्तुएं बनती चली जा रही है क्योंकि हमने खुद ही हमारी गतिविधियों से खुद को वेंटीलेटर पर रख दिया है, ।काश की हमारी हर गतिविधि क्षणिक सुख को लेकर नही दीर्घकालीन सुख के लिए हो ।

हम से पहले ये प्रकृति जीव जंतु इस पृथ्वी पर मौजूद है हम से पहले ये भूमि इन सब की है । हमने इन्ही की जगह पर पहाड़ो ,नदियों ,पेड़ो को नष्ट कर खुद के लिए घर ,आफिस, फैक्टरियां ,माल हर सुविधा का प्रबंध कर लिए  इन सभी को पूरी तरह नज़र अंदाज़ करके , आज जो पक्षी हमारी बालकनी में आता है उसे हम पानी देकर गोरवनीत होते है असल में कभी  वहा उसका बसेरा होता होगा , जो मटमैला सा नाला हमे रास्ते मे दिखता है वहा का निर्मल जल पीकर वह प्यास बुझाता होगा। हम बर्ड हाउस बनाते  है जबकि जिस ज़मीन पर हमारी पूरी कॉलोनी कटी है वहा उसका भी आलीशान घर था ।हम मात्र किरायदार है जिन्होंने बिना मकानमालिक की मंजूरी के उसकी कृति को बेपरवाह ढंग से इस्तेमाल करने की गलती की है और करते जा रहे है ।मकान मालिक भी हमारे प्रति सख्त ज़रूर होगा और वो अब दिखने भी लगा है क्योंकि आज वायु ,जल, फल,सब्जियां   की गुणवत्ता में कमी होती जा रही है , मौसम का बदलाव , ग्लोबल वार्मिंग , प्राकृतिक आपदाएं हमारे  सामने है ।हमारे साथ साथ मासूम जानवर भी इसका शिकार हो रहे है जिन्होंने कभी अपनी सीमा नही उलाँघि ।

हम सब ऋणी है , पर कोशिश की जाए तो छोटे छोटे प्रयासों से हम सारा ऋण हम चुका भी सकते है । ज़रूरत है विवेकपूर्ण जीवन की जिनमे हर अविष्कार और हर कदम,  आने वाले कल और सभी के हित के लिए हो , क्योकि हम प्रकृति के अभिन्न अंग है । ताकि पर्यावरण की परिभाषा सिर्फ शाब्दिक ना रह जाये।

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