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Monday, March 25, 2019

कविता बूंदों की उम्र

सुबह सवेरे में प्रकाशित मेरी कविता पढ़े। (27 जून 2018)

कविता
बूंदों की उम्र
एकता कानूनगो बक्षी

बूंदों की उम्र क्षणिक
छोटा सा जीवन
सदियों के विशाल संसार में
जैसे छोटी सी उम्र  इंसान की

पलके खुलने से
पलके मुंदने तक का सफ़र
पल भर में मिल जाती संसार सागर में

बूंदों का सफ़र
मधुर स्मृतियों का जैसे एलबम पुराना
सारांश सुख दुख का

खट्टे मिट्ठे अहसासों
और आलोचनाओ के तराजू के पलड़ों से
खुद को आज़ाद कर देता है जब मन
बारिश होने लगती है
बहने लगती हैं बूँदें

क्षण भर के लिए चमकती बूँदें
ठंडक देकर
अपनी उम्र पूरी करती है।

एकता कानूनगो बक्षी

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