मदर्स डे की शुभकामनाओं के साथ, सुबह सवेरे में मेरी कविता पढ़ें।
कविता
बेटी का पत्र माँ के नाम
एकता कानूनगो बक्षी
सुनो माँ !
मुझे तुम्हारे हाथ का बना भोजन अब नहीं खाना
भले ही दुनिया के सारे पकवान
तुम्हारे हाथों से बने खाने के सामने फीके हैं
पर अब मुझे नहीं खाना।
माँ !
इन दिनों
तुम्हारे हाथ का स्वाद स्वतः
मेरे हाथ मे चला आया है
आये भी क्यों ना
जब अपनी पूरी सृष्टि तुमने
मुझ पर न्यौछावर कर डाली है
मेरी खुशियों
मेरे दुःखों की रेखाएं
नज़र आती है अक्सर तुम्हारे चेहरे पर।
जैसे मैं ही जीवन का उद्देश्य हूँ तुम्हारा
पर बस अब और नहीं।
अब तुम खुद के लिए जीयो माँ
फिर से बचपन मे लौटो
एक बार फिर से नए शौक पालो
और खो जाओ उनमें
दुनिया की सैर करो
नए लोगों से मिलो
खुलकर मुस्कुराओ
अपने अनुभवों से
किसी के जीवन को उजालों से भर दो
पुरानी ज़िम्मेदारियां
अपने सारे बचे काम भूल जाओ अब।
जैसे हर बार तुम हो मेरे लिए,
मैं भी हूँ ना तुम्हारे लिए
तुम्हारी छोटी सी बेटी नहीं
जिद्दी माँ।
कविता
बेटी का पत्र माँ के नाम
एकता कानूनगो बक्षी
सुनो माँ !
मुझे तुम्हारे हाथ का बना भोजन अब नहीं खाना
भले ही दुनिया के सारे पकवान
तुम्हारे हाथों से बने खाने के सामने फीके हैं
पर अब मुझे नहीं खाना।
माँ !
इन दिनों
तुम्हारे हाथ का स्वाद स्वतः
मेरे हाथ मे चला आया है
आये भी क्यों ना
जब अपनी पूरी सृष्टि तुमने
मुझ पर न्यौछावर कर डाली है
मेरी खुशियों
मेरे दुःखों की रेखाएं
नज़र आती है अक्सर तुम्हारे चेहरे पर।
जैसे मैं ही जीवन का उद्देश्य हूँ तुम्हारा
पर बस अब और नहीं।
अब तुम खुद के लिए जीयो माँ
फिर से बचपन मे लौटो
एक बार फिर से नए शौक पालो
और खो जाओ उनमें
दुनिया की सैर करो
नए लोगों से मिलो
खुलकर मुस्कुराओ
अपने अनुभवों से
किसी के जीवन को उजालों से भर दो
पुरानी ज़िम्मेदारियां
अपने सारे बचे काम भूल जाओ अब।
जैसे हर बार तुम हो मेरे लिए,
मैं भी हूँ ना तुम्हारे लिए
तुम्हारी छोटी सी बेटी नहीं
जिद्दी माँ।
No comments:
Post a Comment