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Tuesday, July 30, 2019

चुनाव और जीवन (जनसत्ता 1 मई 2019)

जनसत्ता में मेरा लेख पढ़ें।

चुनाव और जीवन

एकता कानूनगो बक्षी

अपने जन्म के साथ ही हम सब बहुत सी क्रियाएँ स्वतः करने लगते हैं. जैसे सांस लेना और सांस छोड़ना ,रोना, हँसना, हाथ पैर हिलाना, खाना पीना, और भी कई तरह से हम ही नहीं बल्कि हर एक प्राणी इन क्रियाओं के माध्यम से ये सिद्ध करने लगता है की वह जीवित है  तथा अपनी उपस्थिति किसी न किसी क्रिया के माध्यम से महसूस कराते हुए जीवन में आगे बढता जाता है। इसके अलावा कुछ बातो को जीवन में हम चुनकर भी अपना लेते हैं. अपने नैसर्गिक माता-पिता को चुनने के अलावा हमारे पास लगभग सभी चीजों को चुनने का विकल्प मौजूद होता है.

उम्रभर हम चुनाव के इस महत्वपूर्ण विकल्प का उपयोग अपने जीवन को संवारने में करते रहते हैं. हमारे संघर्षों की सफलता असफलता और जीवन का सौंदर्य हमारे इसी विकल्प के ठीक और बेहतर उपयोग पर निर्भर करता है. चुनने की थोडी बहुत कोशिश हम सब काफी हद तक जीवन की शुरुआत से करने लगते हैं. लेकिन अनुभव,शिक्षा,नैतिक- अनैतिक मूल्यों के ज्ञान के साथ साथ चयन की बेहतर समझ भी विकसित होती जाती है.

रोजमर्रा में हर एक क्षण हम किसी न किसी बात का चुनाव कर ही रहे होते हैं.  कुछ चुनाव हम ऐसे ही करते जाते हैं कि पता ही नहीं चल पाता. हमारे परिधान, आचरण, दोस्त, प्रेम,  बोलचाल आदि स्वतः शामिल होते जाते हैं लेकिन कुछ का चुनाव हम ध्यानपूर्वक करने की कोशिश करते हैं.  अपनी शिक्षा, व्यवसाय,खान पान, जीवन साथी आदि चुनते हुए काफी सावधानी बरतनी होती है क्योंकि चुनाव की यह प्रक्रिया हमारे सुखों और खुशहाली का आगे का रास्ता सुनिश्चित करती  है.

जीवन के शुरुआती दौर में चुनाव करना काफी सुगम रहता है क्योंकि हमारे परिवार के बड़े ही हमारे लिए सोच समझ कर निर्णय लेते रहते हैं और उन्ही का नजरिया एक तरह से हमारे चयन का आधार बन जाता है, जीवन को लेकर एक दृष्टिकोण भी कुछ समय के लिए उसी के अनुरूप बन जाता है. सच तो यह है कि यह शुरुआती प्रभाव अधिक समय तक बना नही रहता है,जैसे जैसे हमारी उम्र और अनुभव का दायरा विस्तृत होता जाता है चुनाव में हम अपने आप पर निर्भर होते जाते हैं. देश-काल और परिस्थिति भी काफी हद तक हमारे निर्णयों पर खासा असर डालती है.

कहा जाता है कि हमारा काम और हमारी संगति हमारे व्यक्तित्व का आईना होती है. इसी तरह हमारे चुनाव करने की प्रवत्ति भी हमारी जीवनदृष्टि, तार्किकता और सौंदर्यबोध का बिम्ब होती है. हमारे द्वारा लिया गया निर्णय हमें परिभाषित करता है. हमारे लिए गए छोटे से छोटे निर्णय का असर हमारे वर्तमान और भविष्य के साथ ही हमारे आस पास के लोगों और व्यवस्था पर भी असर डालता है. ऐसे में सही निर्णय लेना एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी कही जा सकती है.

जब हम चुनाव करते है तब हमारे सामने बहुत सी समस्याएं होती है.  सर्वप्रथम तो कई विकल्पों का एक साथ उपलब्ध होना और उस मे से सब से बेहतर का चुनाव करना जो सबके लिये हितकारी हो. अगर विकल्प अधिक हैं तो हर विकल्प के बारे में सटीक जानकारी और उसके साथ ही तुलनात्मक विश्लेषण करना भी बेहद ज़रूरी हो जाता है.

हमारी सुनने और देखने की शक्ति कितनी ही सक्षम क्यों न हो पर कभी कभी बिना विचारे, बिना विश्लेषण विषय की गहरी पड़ताल किए किसी भी बात और तथ्य को मान लेना, हमारी सब से बड़ी मूर्खता का परिचायक ही होगा । अक्सर हम दूसरों के शब्दों को उनके विचारों को अपना मान लेते है और भुलावे में आकर उनकी ही भाषा हम भी बोलने लगते हैं. अंग्रेज़ी में इसे ब्रेन वाश भी कहा जाता है.  ये एक तरह से हमारा बौद्धिक आलस्य ही है जिस से हम बस पकी पकाई खिचड़ी खाने का मन बना लेते हैं और इस तरह अपने जीवन की गाड़ी का स्टेयरिंग  किसी और के हाथ मे दे देते है. हमारे लिए हम से बेहतर निर्णय कोई और नही ले सकता.  चाहें तो हम सब से राय ज़रूर ले सकते हैं पर आखिरी निर्णय तो हमारा ही होना चाहिए, वो भी काफी विचार और अध्ययन के बाद.

जब जब आप प्रजातंत्र में अपनी सरकार बनाने के लिये चयन की इस प्रक्रिया से गुजरते हैं तब जिम्मेदारी और अधिक बढ जाती है. अगर आप किसी निश्चय पर आ भी गए हैं तब भी एक और वैचारिक प्रक्रिया बचती है. वह यह कि क्या आपका चुनाव आपके नैतिक मूल्यों पर खरा उतरता है? क्या आपका चुनाव सबके हित में है? क्या उसका सकारात्मक असर पंक्ति में आखिरी खड़े व्यक्ति पर पड़ेगा. क्या विकल्प का यह चयन आप अपनी कमजोरियों, स्वार्थ या किसी लाभ की आकांक्षा से तो नहीं कर रहे । अब्राहम लिंकन ने कहा था कि ‘मेहनत से कमाए 4रुपये ,चोरी से कमाए हज़ार रुपये से कही अधिक मूल्यवान होते हैं.’



सच तो यह है कि जब हम किसी भी तरह का चुनाव करते हैं तब हमारा उद्देश्य बेहतरी की दिशा में होना चाहिये. सही लिये गये निर्णय का असर प्रत्यक्ष रूप से दिखने भी लगता है. उस सही निर्णय की वजह से हो सकता है महल खड़ा न हो पाए पर एक स्वस्थ और खुशहाल वातावरण ज़रूर बनता है और उस से भी कहीं बेहतर इंसानियत ,सौहार्द, शिष्टाचार, शिक्षा ,और सभ्य समाज की भव्य इमारत की नींव दिखने लगती है जो सुनिश्चित करती है कि हमारा चुनाव सही है और बहुमूल्य भी. सोचिये क्या हम कर पा रहे हैं कुछ ऐसा ही !




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