नईदुनिया के तरंग परिशिष्ट में कविता का प्रकाशन हुआ है। आप भी पढ़ें।
कविता
एक दिन
एक दिन
खेलूँगी बहुत देर तक
तुम्हारे साथ
तुम्हारे साथ ही
कोहरे की रजाई हटा देखूंगी
पहाड़ो को पार करते हुए
सूरज की लंबी कूद
दिन भर धूप और छांव जैसा
नृत्य करेंगे मिलकर
गौरया के साथ
बहरूपिए बादलों में ढूंढेगे अपनों को
और कभी खुद का बिम्ब देख
लगाएंगे ठहाके
गुलाबी शाम का स्वागत करेगे
रंगोलियाँ बना कर आसमान में
टिमटिमाते तारों की गुटबाजी
और चांद की खूबसूरती को
निहारते रहेगे देर तक
धूल और धुंए से मुक्त हो
निर्मल मन से
चहकते रहेंगे बच्चों की तरह
एक दिन।
****
एकता कानूनगो बक्षी
कविता
एक दिन
एक दिन
खेलूँगी बहुत देर तक
तुम्हारे साथ
तुम्हारे साथ ही
कोहरे की रजाई हटा देखूंगी
पहाड़ो को पार करते हुए
सूरज की लंबी कूद
दिन भर धूप और छांव जैसा
नृत्य करेंगे मिलकर
गौरया के साथ
बहरूपिए बादलों में ढूंढेगे अपनों को
और कभी खुद का बिम्ब देख
लगाएंगे ठहाके
गुलाबी शाम का स्वागत करेगे
रंगोलियाँ बना कर आसमान में
टिमटिमाते तारों की गुटबाजी
और चांद की खूबसूरती को
निहारते रहेगे देर तक
धूल और धुंए से मुक्त हो
निर्मल मन से
चहकते रहेंगे बच्चों की तरह
एक दिन।
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एकता कानूनगो बक्षी
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