My Profile Profile Hello Friends My name is Ekta Kanungo . I am from Indore, presently in Pune . I

Thursday, August 22, 2019

निजता की अदृश्य लकीर/ जनसत्ता/23 अगस्त 2019

जनसत्ता में आज मेरा लेख पढ़ें।

दुनिया मेरे आगे

निजता की अदृश्य लकीर
एकता कानूनगो बक्षी



मनुष्य सामाजिक प्राणी है और समाज की अपनी एक व्यवस्था है, जिसके अपने कुछ नियम और सलीके हैं। इन नियमों के पालन से गरिमामय और स्वस्थ वातावरण का निर्माण तो होता ही है साथ ही ये हमे एक दूसरे से जोड़े रखने का भी काम करते हैं। इन नियमों के साथ ही एक अदृश्य लकीर ऐसी भी हम सब के बीच खिंची होती है, जो हमारी और दूसरों की आज़ादी और उनकी निजता की सुरक्षा और मान को सुरक्षित रखा जाना सुनिश्चित करती है। इस लकीर का पालन किसी भी सभ्य समाज में रहने वाले हर व्यक्ति का दायित्व होना अपेक्षित रहता है।

देखा गया है कि वही समाज फलता फूलता है, जहाँ नए का स्वागत हो और जिसमें हर इंसान को अपना जीवन अपनी पसंद से जीने की आज़ादी हो। कई बार इसके विपरीत भी  देखने को मिलता है, जब समाज कोई एक ऐसा रूढ़ ढांचा बना लेता है जिसमें अपनी तरह से ही चीजों का मूल्यांकन किया जाने लगता है।  व्यापक और नए को स्वीकार करने की दृष्टि के अभाव में वह कई व्यक्तियों की गतिविधियों को खारिज कर देने को ही उचित मानने लगता है। अगर हम उनके बनाए मापदंडों में खरे नहीं उतर पाते तो हमे असफल  घोषित कर दिया जाता है। समाज की आकांक्षाओ का दबाव कभी कभी उस सीमा रेखा को भी लांघ जाता है जिसके चलते इंसान खुद को हताश असहाय महसूस करने लगता है और गलत कदम उठा लेने में विवश हो जाता है।


मनुष्य के अंदर अपार संभावनाएं है, जो कि हर बार  पुराने मापदंड तोड़ती है और नया इतिहास  रचती है। किसी निश्चित पैमाने और कुछ लोगों की उम्मीदों पर खरे उतरने से कहीं अधिक ऊंची उड़ान भरने में वह सक्षम हो सकता है। कुछ लोगो के सीमित ज्ञान और समझ से लागू किये निराधार मापदंडों से खुद का मूल्यांकन करना शायद हमारी सबसे बड़ी भूल होगी। हर इंसान की अपनी यात्रा है, अपने संघर्ष हैं, और अपने मुकाम भी, तो फिर कैसे लंबे समय से चले आ रहे कुछ रूढ़ पैमानों पर खुद को आंकने के लिए बाध्यता होनी चाहिए?  जबकि अनंत संभावनाओं का विशाल आसमान हमारे समक्ष है।



स्कूल के दिनों में असेंबली या स्पोर्ट्स पीरियड के वक्त विद्यार्थियों को पंक्तिबद्ध करने के पूर्व सब से पहले कहा जाता था कि प्रत्येक व्यक्ति दूसरे  व्यक्ति से एक हाथ की दूरी बनाकर खड़ा हो ताकि सब स्वतंत्र और सहजता से अपना काम व्यस्थित रुप से कर सकें।  यही सबक हमें पुनः याद करने की ज़रूरत है। किसी के भी जीवन मे हमें और किसी को भी अपने जीवन मे इतना हस्तक्षेप नहीं करने देना चाहिए कि हमारी खुशियों और निजता पर उसका विपरीत प्रभाव पड़े।  हर रिश्ते में, हर समाज में एक ऐसी सीमा रेखा का होना बहुत ज़रूरी समझा जाना चाहिए।

ऐसे में ख्यात शायर राहत इंदौरी साहब का एक शेर याद आता है "अफवाह थी कि मेरी तबीयत खराब है, लोगों ने पूछ पूछ कर बीमार कर दिया"।
एक दूसरे की चिंता,मदद,सलाह,देखभाल जहाँ हमे एक दूसरे के करीब लाती है, वहीं उसकी अति पूरी तरह से विपरीत प्रभाव भी डाल सकती है। इसलिए थोड़ा सा फ़ासला हमेशा बनाये रखना बहुत ज़रूरी है ।

कार्यक्षेत्र और परिवार के बीच भी इस सीमा रेखा की सामान्यतः अनदेखी की जाती है। आप कैसे कपड़े पहनते है? आप मांसाहारी हैं या आप शाकाहारी हैं?आप अपनी भाषा बोलते हैं या आप विदेशी भाषा मे संवाद करना पसंद करते हैं? , आपका व्यवसाय, आपकी शादी,आपके बच्चे, आपके विचार, इन सब सन्दर्भों में भी मनमाने ढंग से समाज के कुछ लोग अपने बनाए रूढीवादी मापदंडों और पूर्वाग्रहों  को थोंपकर जीवन में अनचाही मुश्किलें पैदा करने का प्रयास करते रहते हैं।  अगर आप उनके पैमाने पर खरे नहीं हैं तो आप अधूरे हैं। जबकि अधूरापन उनकी सोच में होता है।  दरअसल, वे लोग वस्तुस्थिति और अन्यों के मन और जीवन को समझने में सक्षम नहीं होते। ऐसे लोग पुरानी रूढ़िवादी परम्पराओं मे जकड़े हुए होते हैं और किसी भी बदलाव से असुरक्षित महसूस करते हैं। जबकि असल मे होना तो यह चाहिए कि पुराने अनुभवों और नए समय की ज़रूरतों को देखकर निर्णय लिए जाएँ न कि लोक लाज के किसी भय से प्रभावित होकर।


हालांकि हमारे यहां बड़ी पुरानी कहावत है "निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय,बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुहाय"  पर अपना सही आलोचक चुनना और उसकी किन बातों पर ध्यान देना है, इसका भी सही चयन करना बेहद आवश्यक है। एक बार हमारे विचारों और जीवन पथ का विचलन हुआ तो समझिये फिर सही राह पर आगे बढ़ना कितना  कठिन हो जाएगा।


अक्सर देखा जाता है बेहतर विकल्पों और खुलेपन की चाह के चलते कई लोग शहर,समाज, अपने देश तक से पलायन कर जाते हैं। हर व्यक्ति ऐसे समाज मे रहना चाहता है जहां वह खुश रह सके, अपने मन का कर सके,जहां उसका विकास हो सके। वह अपने जीवन में अपने निर्णय लेने के लिए स्वतन्त्र हो, जहां उसकी निजता का सम्मान हो। आलोचनात्मक रवैयों और थोपे गए विचारों और नियमों , मापदंडों से दूर वो अपनी पूर्णता में खुलकर जी सकें। आज़ादी का एक मतलब खुलकर, अपराध मुक्त और सम्मान भाव से, बिना किसी की आज़ादी में ख़लल दिए ,थोड़ी सी दूरी बनाए रख कर सबके साथ और सबको साथ लेकर आगे बढ़ते जाना भी है।

एकता कानूनगो बक्षी

दुनिया मेरे आगेः निजता की अदृश्य लकीर-https://www.jansatta.com/duniya-mere-aage/duniya-mere-aage-invisible-image-of-human-privacy/1126963/

No comments:

Post a Comment