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Saturday, August 24, 2019

कविता / सफेद घर / एकता कानूनगो बक्षी ( सुबह सवेरे - 25 अगस्त 2019)

सुबह सवेरे में आज मेरी कविता पढ़ें।

कविता
सफेद घर
एकता कानूनगो बक्षी

गुलाबी और सफेद
बोगनबेलिया से आच्छादित सफेद रंग का घर
आकर्षित करता है बार बार

पारदर्शी खिड़कियों के भीतर का रहस्य
कुतूहल जगाता है सूरज की रोशनी के साथ

दीवारें
जैसे खिड़कियों में बदल दी गईं हैं इस घर की
और जैसा कि चलन है इन दिनों
एक मात्र प्रवेश द्वार
डोर बेल बजाने को ललचाता रहता है मुझे

धूप के साथ
मन प्रवेश करता है सामने के सफेद घर में

आंगन में चिड़ियों के साथ
बिल्लियाँ और कुछ बच्चे दौड़ लगाते हैं दिन भर
ग्रामीण चौकीदार की झोपड़ी से निकल कर 
रोटियों की महक
मेरी बालकनी को स्मृतियों से भर देती है 

उदास तो कतई नही लगता यह
दो बुजुर्ग रहते हैं इस घर मे
जीवन की शाम बिताते

चाय के दो प्याले खिलखिलाते हैं
सुबह शाम
हंसी हंसी में उड़ा दिए हैं जैसे उन्होंने
अपने सारे दुःख 

जीवन की आख़िरी पारी में
आत्मनिर्भरता ,आत्मसम्मान और संतोष की
भैरवी से गूँजता रहता है सफेद घर।

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