उपवास
भोजन को त्याग कर
बैठी है वो
सब कुछ भरा भरा सा है भीतर
सालो से बटौर रही थी
अन्तःकरण में कही
जो ऊर्जा दे रहा निरंतर
अब न कुछ भीतर जा रहा
न कुछ बाहर आ रहा
अनन्तता से पहले का शून्य पसरा पड़ा
दिए में थोड़ा और घी उढ़ेल
अन्धकार को रोशनी से भरने की कोशिश कर
उपवास की नयी परिभाषा गड़ रही है वो ।
एकता ***
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