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Monday, March 25, 2019

कविता बूढ़ा पेड़ (17 नवम्बर 2018)

सुबह सवेरे में आज मेरी कविता पढ़ें।

बूढ़ा पेड़

घने हो गए पेड़ की छटाई के लिए
फंदा डाला
और एक आदमी तने का सहारा ले
चढ़ गया ऊंची मजबूत डाली पर

पेड़ ही ने उसे सहारा दिया और ऊँचाई भी

फिर आदमी ने
पेड़ की शाखाओं पर
कुल्हाड़ी से वार किए
पूरा पेड़ कांप गया

धराशाई होती गईं कमजोर शाखाएं

पेड़ के अंग बिखर गए ज़मीन पर
सड़क हरी हो गई ताजा कतरों से

आरी चलाई जा रही अब
अलग हुई डालियों पर
टुकड़ों टुकड़ों में बंट जाएगा पेड़
लदान के लिए

कुछ के घर संवारेगा
कुछ का चूल्हा जलेगा
अलाव में बदलकर
गर्माहट देगा कुछ लोगों को
जाड़े में

थोड़े दिनों में
फिर निकल आएंगी नई शाखाएं

बिना प्रतिशोध निकल आएंगे नए पत्ते
पंछी आते रहेगे नियमित
पुराने जख्मों को भूलकर
फिर मुस्कुराने लगेगा
बूढ़ा पेड़।

एकता कानूनगो बक्षी

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