सुबह सवेरे में आज मेरी कविता पढ़ें।
कविता
डस्टबिन नहीं है लेकिन
निराशा,तिरस्कार,कुंठा,अपमान
खत्म करते रहते हैं उसको
सारे कूडे करकट को
छुपाए रखता है अपने भीतर
चमकती दीवारों के पीछे के क्षरण को
जान पाना मुश्किल हो जाता है उसकी उपस्थिति से
सबको साथ जोड़ने की कोशिश में
अकेलेपन का संत्रास झेलता रहता है वह उपेक्षित
और जब रोज रोज के
संग्रहित विष का असर होने लगता है
गलने लगती है देह उसकी
पटक दिया जाता है
बेकार हो गई चीज़ों के साथ
एक दिन।
एकता कानूनगो बक्षी
कविता
डस्टबिन नहीं है लेकिन
निराशा,तिरस्कार,कुंठा,अपमान
खत्म करते रहते हैं उसको
सारे कूडे करकट को
छुपाए रखता है अपने भीतर
चमकती दीवारों के पीछे के क्षरण को
जान पाना मुश्किल हो जाता है उसकी उपस्थिति से
सबको साथ जोड़ने की कोशिश में
अकेलेपन का संत्रास झेलता रहता है वह उपेक्षित
और जब रोज रोज के
संग्रहित विष का असर होने लगता है
गलने लगती है देह उसकी
पटक दिया जाता है
बेकार हो गई चीज़ों के साथ
एक दिन।
एकता कानूनगो बक्षी
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