पहला कदम हर इंसान के जीवन में रोमांच से भरा हुआ होता है .वो
कदम किसी भी दिशा में लिया गया हो . बच्चे का स्कूल में पहला कदम, नए व्यवसाय में व्यापारी का पहला कदम . राजनीति में पहला कदम , अभिनय में पहला कदम , या एक लड़की का अपने
घर को छोड़ कर नए घर और नए परिवार में पहला कदम. हर नया परिवर्तन एक उत्सव की तरह
होता है . जिसका हर इंसान के जीवन में बहुत महत्त्व रहता है .
नया नवेला बहुत उत्साहित रहता
है वह अपनी कार्यक्षमता से कहीं अधिक काम करने के जोश
से भरा होता है. बहुत खुश और सकारात्मक सोच से परिपूर्ण . साथ ही दूसरी और
उस क्षेत्र में पहले से पहला कदम ले चुके वहाँ मौजूद उसके सीनियर भी खासा उत्साहित रहते हैं .
नए कार्यक्षेत्र में कदम रखने
पर शुरूआती मेल मिलाप के बाद शुरू होती है असली खीचतान . सबसे पहले उससे वो नियम
सिखाये जाते है जो सालों से अभी तक किसी भी सिनिअर ने नहीं अपनाए थे. यह
नियम बाकी दिग्गजों के लिए नहीं होते, यह
खासकर होते हैं नए नवेले के लिए. उसके अच्छे काम पर कभी कभी उसकी तारीफ़ भी
हो जाती है. दो दिन तक वो उस ख़ुशी में और भी बेहतर काम करता है उसके
चेहरे की चमक देखने लायक होती है. पर जैसे है उससे छोटी सी गलती हो जाती है
तब उसके पहले किये हुए अच्छे काम को देखते हुए उससे माफ़ी नहीं मिलती बल्कि यह कहकर
आलोचना की जाती है कि वह अभी ट्रेनी है अभी मास्टर नहीं. हर जनरेशन अपने साथ
नयी ताजगी लाती है, काम करने के नए तरीके. बस
यहाँ फिर वही खीचतान शुरू होती है , सिनिअर चाहते
हैं कि जैसे पहले से चल रहा है सब कुछ वैसा ही चले . वो नए नवेले के सृजनात्मक सोच
का तिरस्कार करते हैं वो उस पर दबाव डालते हैं ताकि वो उनके बनाये
साँचे में वही रूप ले ले जो सालो से चला आ रहा है . वो उसे अपनी तरह बनाना
चाहते है.
दोस्तों कब तक ऐसा चलता रहेगा
क्यों आज भी हम नए का स्वागत खुली सोंच के साथ नहीं कर पाते . हाँ हर जगह
इम्प्रूवमेंट की जगह होती है पर इम्प्रूवमेंट का मतलब रिवर्स गियर लगाना नहीं है .
क्यों हमारा समाज चाहता है की जैसे पहले से चलता आ रहा है वही सही है . कश्मीर की
गर्ल बैंड पर रोक लगाना एक जीता जागता उदाहरण है. क्यों हम नयी जनरेशन से चाहते है की वो एक फ्रेम में काम करे. क्यों हम
उन्हें आजादी नहीं देते की वह अपना नयापन ला सके. उनके जोश को ठंडा
करने का हक किसी को नहीं होना चाहिए. सकारात्मक
दिशा में किया गया परिवर्तन हमेशा अच्छे नतीजे लाता है. सतयुग के महान ऋषि
मुनि जो अब इस दौर में शायद ही बचे होंगे पर हर दिन कही न कहीं आज के
हमारे संतों की कैसी-कैसी महफिल सजती है कौन नही जानता और हर दिन उनके
काण्ड न्यूज़ पेपर और न्यूज़ चैनल की शोभा बढ़ाते ही रहते हैं . आखिर क्यों उन पर रोक
नहीं लगती क्योकि संतों सन्यासियों का सम्मान करने की हमारी परम्परा सालों से चल
रही है इसलिए ?
पुराना है तो बेहतर है. Old is gold , ऐसा है पर new can be diamond.. अगर उसे पुराने का अनुभव और नयेपन की
ताजगी और आजादी का तालमेल बैठाने दिया जाए. प्लीज वेक-अप !
अच्छा है,लिखना जारी रहे ,शुभकामनाएँ। बैंक की नौकरी में जब हम लगे थे,हमारा अनुभव भी कुछ ऐसा ही रहा था। कोशिश यही रही की सोने की अंगूठी में किसी तरह हीरा बैठ जाए।
ReplyDeletethank you papa
Deleteबोहोत अच्छा आर्टिकल लिखा है भाभी. हमारे बड़ों को हमें प्रोत्साहन देना चाहिए नाकि पीछे खीचना चाहिए. जब हमारे सीनियर्स हमें प्रोत्साहित करेंगे तब ही हम जीवन में खुल कर तरक्की कर पाएँगे.
ReplyDeletewell said dear kinu.
DeleteVery nice Ekta ji...Keep writing
ReplyDeletethank you bhabhi
Delete