संस्मरण
खुशी भरा वह दिन

सही-सही जरूरतमंद व्यक्तियों को तलाशना भी बहुत कठिन रहा . रास्ते में सब से पहले एक मंदिर हमें दिखा, पर वहाँ इतने ज्यादा जरूरतमंद लोग थे कि हमारे पास जो सामान था वो पर्याप्त नही होता। और किसे दें और किसे छोडें और फिर कहीं वे लोग हमें कुछ भला बुरा बोलने नहीं लग जाएँ ,इस डर से हमने मंदिर के आस पास का इलाका ही छोड़ दिया . आगे बढे तो एक बुजुर्ग व्यक्ति फटे हुए और गन्दे से कपडे और जूते पहने जा रहा था , पर मन में विचार आया की यह गरीब है या भिखारी, अगर भिखारी है तब तो ठीक है पर अगर कामकाजी गरीब है तो इन्हें देना ठीक नहीं रहेगा क्योकि गरीब का आत्मसमान हम सब से कई गुना ज्यादा होता है और कहीं अच्छा करते हुए हम उसे दुखी न कर दें इस विचार से कुछ देर तक उन्हें देखने के बाद भी हम हिम्मत नहीं जूटा पाए और आगे बढ़ गए. कुछ मिनट्स गाडी चलाते हुए हमे सिग्नल के पास दो बुजुर्ग व्यक्ति मिले. हिम्मत तब तक नहीं हुई जब तक की उन्होंने स्वयं अपना हाथ आगे नहीं बढाया, जैसे ही उन्होने हमारी ओर हाथ आगे बढ़ाया, हमने ख़ुशी से कपडे और रूपये निकाल कर उन्हें दिए, उनके चेहरे पर मुस्कराहट फैल गई और हाथ आशीर्वाद के रूप में हमारे सामने कर दिए .उस समय दोपहर के 12 बज रहे थे आधे घंटे से हैदराबाद की गर्मी में हम घूम रहे थे,उन बुजुर्गों की पुलकित आँखों को देख ऐसा लगा किसी ने हमें शीतल पेय पिला दिया हो. अंदर तक अद्भुत तरावट महसूस हुई .
आगे बढ़ने पर हमें एक कचरा बीनने वाली बूढी और कमजोर सी एक महिला सोती हुई दिखी, उसे भी उठाकर हमने कपडे दिए, हमे ऐसा करते देख पास में खड़े युवक ने भी उसकी मदद में कुछ रूपये दे दिए . थोडा और आगे बडे तो एक औरत और उसकी सात-आठ साल की बच्ची हमे आकान्क्षा भरी नजरों से देखने लगी तो मैंने उसे अपने कुछ पुराने टॉप और पेंट दे दी तो देखा कि उस बच्ची और उसकी माँ की आँखों में अथाह ख़ुशी सी भर आई थी.
फिर कुछ गलियों को पार करते हुए हमे एक बहुत कमज़ोर लड़का दिखा, बहुत हताश सा ज़मीन पर बैठा था उसके कपड़ों से लेकर बाल तक धूल से सने हुए थे. हमने उसे शर्ट दिया लेकिन उसने हमारी तरफ नहीं देखा .देर तक वह हमारे दिए शर्ट को निहारता रहा।. थोडा आगे बढ़कर जब हमने लड़के को देखा, उसने नया शर्ट पहन लिया था और उसका चेहरा अब बहुत तरोताज़ा लग रहा था. दोपहर हो गई थी और गर्मी भी काफी बड गई थी, भूख भी लगने लगी थी अत: हमने घर की तरफ अपना रुख किया. दिन भर हमारे मन में बहुत खुशी और संतोष का भाव बना रहा, चेहरे पर लगातार मुस्कराहट बनी रही, एक अलग सी स्फूर्ति हमारे सारे कामकाज में महसूस होती रही. ऐसी खुशियाँ शायद ही कभी किसी फिल्म देखने या शॉपिंग मॉल में खरीददारी करने पर मिल पाई होगी।
एकता कानूनगो बक्षी
अच्छा है। बधाई।
ReplyDeleteThank u papa
Deletebahut accha likha..sach ye din bahut santushti dene wala tha..
ReplyDelete:)
DeleteEk achchhe sankalp ko lekar tumne jo kary kiya aur use apne vicharon ki dor se lapeta, yah sahi roop se manaya hua makar sankranti ka tyohar tha. Naye blog ke liye anek shubhkamnayen. Apne vicharon ki abhivayakti ki ysh kadi nirbadh roop se chalti rahe....isi kamna ke sath...manju
ReplyDeleteThank you Bhua
DeleteEk achchhe sankalp ko lekar tumne jo kary kiya aur use apne vicharon ki dor se lapeta, yah sahi roop se manaya hua makar sankranti ka tyohar tha. Naye blog ke liye anek shubhkamnayen. Apne vicharon ki abhivayakti ki ysh kadi nirbadh roop se chalti rahe....isi kamna ke sath...manju
ReplyDeleteVery well written Ekta
ReplyDelete“Those who are happiest are those who do the most for others.”
― Booker T. Washington, Up from Slavery
Thank you.
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